MP सरकार हवाई किराए में रोजाना 21 लाख खर्च रही, एक घंटे का रेट 5 लाख से ज्यादा, आंकड़ों ने चौंकाया
By Ashish Meena
December 7, 2025
MP News : मध्य प्रदेश सरकार के हवाई यात्रा खर्च ने अब तक के सभी रिकॉर्ड तोड़ दिए हैं। विधानसभा में पेश किए गए नवीनतम आंकड़ों से पता चला है कि मुख्यमंत्री डॉ. मोहन यादव के नेतृत्व में राज्य सरकार किराए के विमानों और हेलीकॉप्टरों पर औसतन प्रतिदिन लगभग ₹21 लाख खर्च कर रही है।
कांग्रेस विधायकों प्रताप ग्रेवाल और पंकज उपाध्याय के सवालों के जवाब में सामने आई इस जानकारी ने राज्य के सरकारी फिजूलखर्ची पर गंभीर सवाल खड़े कर दिए हैं।
विधानसभा में पेश आंकड़ों के मुताबिक, जनवरी 2021 से नवंबर 2025 तक विमान किराए पर 290 करोड़ रुपए खर्च हुए। साल 2019 में सालाना किराया 1.63 करोड़ रुपए था, जो 2025 में बढ़कर नवंबर तक 90.07 करोड़ रुपए हो गया।
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जनवरी 2024 से नवंबर 2025 तक विमान-हेलीकॉप्टर किराए में कुल 143 करोड़ रुपए खर्च हुए, यानी प्रतिदिन औसत 21 लाख रुपए। इसके पहले जनवरी 2021 से दिसंबर 2023 तक तीन सालों में कुल 147 करोड़ रुपए खर्च हुए थे, यानी प्रतिदिन औसत 14 लाख रुपए।
सरकारी विमान का क्रैश और मेंटेनेंस की कमी
सरकार ने इस भारी वृद्धि के लिए कोविड के बाद चार्टर्ड विमानों की बढ़ी मांग, ईंधन और मेंटेनेंस की लागत में वृद्धि तथा लोकसभा चुनाव को जिम्मेदार ठहराया है।
हालांकि, सबसे बड़ी समस्या यह है कि राज्य सरकार के पास अपना कोई उड़ने लायक फिक्स्ड विंग विमान (सरकारी हवाई जहाज) नहीं है। राज्य का सरकारी विमान मई 2021 में ग्वालियर एयरपोर्ट पर क्रैश हो गया था और तब से वह खराब पड़ा है। न तो उसकी मरम्मत कराई गई और न ही कोई नया विमान खरीदा गया। इसी वजह से सरकार को निजी कंपनियों से ₹5 लाख प्रति घंटे की दर से विमान किराए पर लेने पड़ रहे हैं।
कांग्रेस का सीधा आरोप
विपक्षी दल कांग्रेस ने इस खर्च को राज्य की आर्थिक स्थिति के लिए चिंताजनक बताया है। कांग्रेस विधायक प्रताप ग्रेवाल ने आरोप लगाया कि प्रदेश की अर्थव्यवस्था पहले से ही ‘कर्ज प्रधान’ हो चुकी है, ऐसे में ₹5 लाख प्रति घंटे की दर से विमान किराए पर लेकर सैकड़ों करोड़ रुपये हर साल हवा में उड़ाना हास्यास्पद है।
कांग्रेस का कहना है कि यदि सरकार अपने पुराने विमानों की मरम्मत करवाती या नए विमान खरीदती तो यह भारी भरकम किराया बच जाता और उस राशि को विकास कार्यों में लगाया जा सकता था। विधानसभा में स्वयं सरकार द्वारा पेश किए गए ये आंकड़े सरकारी खजाने के दुरुपयोग पर गंभीर प्रश्न खड़े करते हैं।
