कौन बनेगा मध्यप्रदेश का अगला वन मंत्री? रामनिवास रावत के इस्तीफे के बाद कुर्सी पर कई मंत्री-विधायकों की नजर

By Ashish Meena
नवम्बर 28, 2024

MP Hindi News : मध्य प्रदेश में हाल ही में हुए उपचुनाव में विजयपुर सीट पर कांग्रेस प्रत्याशी मुकेश मल्होत्रा ने भारतीय जनता पार्टी के रामनिवास रावत को हराकर जीत दर्ज की थी। जानकारी के लिए आपको बता दे की रामनिवास रावत मध्य प्रदेश सरकार में वन मंत्री है और चुनाव हारने के बाद उन्होंने अपना इस्तीफा दे दिया है।

हालांकि मुख्यमंत्री मोहन यादव के विदेश दौरे के कारण उनका इस्तीफा भी मंजूर नहीं हुआ है। मुख्यमंत्री के लौटने के बाद ही रावत के इस्तीफे पर अंतिम फैसला लिया जाएगा। विजयपुर विधानसभा उप चुनाव हारे प्रदेश के वन मंत्री रामनिवास रावत के त्यागपत्र के बाद इस कुर्सी पर कुछ मंत्रियों और विधायकों की नजर है। वह अपने-अपने स्तर पर इसके लिए प्रयास भी कर रहे हैं।

जनजातीय कार्य मंत्री विजय शाह ने दिल्ली में केंद्रीय वन एवं पर्यावरण मंत्री भूपेन्द्र यादव से भेंट की है। भूपेंद्र यादव विधानसभा चुनाव में प्रदेश के प्रभारी भी रहे हैं। पिछली सरकार में शाह के पास वन विभाग था।

उधर, अनुसूचित जाति कल्याण मंत्री नागर सिंह चौहान ने भी दिल्ली में केंद्रीय कृषि एवं किसान कल्याण मंत्री शिवराज सिंह चौहान से भेंट की है। रावत के पहले वन विभाग भी नागर सिंह चौहान के पास ही था।

रावत जुलाई में बने थे मंत्री, हार के बाद दिया इस्तीफा
आठ जुलाई को मंत्री बनाए गए रामनिवास रावत यह विभाग दे दिया गया था। इस पर नागर सिंह ने नाराजगी भी जताई थी। इन भेंट-वार्ताओं को भी वन मंत्री पद की दौड़ से जोड़कर देखा जा रहा है।

उधर, बुधवार को प्रदेश भाजपा कार्यालय में संगठन पर्व की कार्यशाला में शामिल होने आए नागर सिंह ने मीडिया से बातचीत में कहा, किसे कौन सा विभाग देना है यह मुख्यमंत्री का विशेषाधिकार है। अगर वह वन विभाग देते हैं तो हम संभालने के लिए तैयार हूं।

बता दें, विजयपुर विधानसभा उपचुनाव में रामनिवास रावत को हार का सामना करना पड़ा था। उन्होंने 2023 मध्य प्रदेश में विधानसभा में कांग्रेस में रहते हुए जीत दर्ज की थी, लेकिन बाद में भाजपा में शामिल हो गए थे।

‘अपनों ने हराया’ के प्रश्न पर रावत बोले- क्षेत्र में जाकर देख लो
चुनाव हारने के बाद राम निवास रावत पहली बार भोपाल आए। यहां उन्होंने भाजपा प्रदेश अध्यक्ष विष्णु दत्त शर्मा और अन्य पार्टी पदाधिकारियों से भेंटकर हार के कारणों पर चर्चा की।

मीडिया ने उनसे पूछा- ‘आपने कहा था, अपनों ने हराया’, इस पर रावत ने कहा- क्षेत्र में जाकर देख लो। हालांकि, आगे उन्होंने कहा समय और भाग्य से कोई नहीं लड़ सकता।

आगे पार्टी की द्वारा नई जिम्मेदारी दिए जाने के प्रश्न पर उन्होंने कहा- प्रदेश अध्यक्ष से किसी जिम्मेदारी के संबंध में नहीं बल्कि सौजन्य भेंट हुई है। पार्टी जो भी जिम्मेदारी देगी उसे पूरी ईमानदारी से निभाऊंगा। विदेश से लौटने पर मुख्यमंत्री डॉ. मोहन यादव से भी भेंट करूंगा।

विफल रही रणनीति

बीजेपी की कांग्रेस के इस पारंपरिक गढ़ में पकड़ बनाने के लिए रावत को शामिल करने की रणनीति विफल साबित हुई है. हालांकि कांग्रेस के टिकट पर चुनाव लड़ रहे मुकेश मल्होत्रा भी पहले बीजेपी में थे, 2018 के विधानसभा चुनाव से पहले उन्हें दर्जा प्राप्त राज्य मंत्री भी बनाया गया था.

यह हार चंबल जैसे क्षेत्रों में बीजेपी की रणनीति पर भी सवाल खड़े करती है, जहां जातिगत समीकरण और मतदाता की निष्ठा जैसे स्थानीय कारक व्यापक पार्टी कथाओं पर हावी रहते हैं. विजयपुर, जहां 65,000 आदिवासी मतदाता कुल मतों का 25-30% हिस्सा बनाते हैं, इस जटिलता का प्रतीक है. रावत की पाला बदलने और मंत्री बनने के बावजूद बीजेपी यहां जीत दर्ज नहीं कर सकी, जो पार्टी की रणनीति और जमीनी सच्चाइयों के बीच संभावित डिस्कनेक्ट को दर्शाता है.

जातिगत राजनीति का दिखा गहरा प्रभाव

हालांकि, मुख्यमंत्री डॉ मोहन यादव ने इस हार को कम महत्व दिया है, यह कहते हुए कि 2018 में 18,000 वोटों के अंतर से हार के मुकाबले इस बार का 7,000 का अंतर कम है. बावजूद इसके, विपक्ष इस हार को सरकार में जनता के घटते विश्वास के रूप में पेश करेगा.

चंबल क्षेत्र, खासकर विजयपुर, में जातिगत राजनीति का गहरा प्रभाव है. इस उपचुनाव में भी जातिगत समीकरण विकास जैसे अन्य मुद्दों पर भारी पड़े. मुकेश मल्होत्रा की जीत का कारण उनके सहारिया समुदाय से जुड़े होने को माना जा सकता है, जिसका इस क्षेत्र में बड़ा प्रभाव है. इसके अलावा, बहुजन समाज पार्टी (बीएसपी) के उम्मीदवार का इस बार चुनाव नहीं लड़ना भी एक महत्वपूर्ण कारक रहा. पिछले चुनाव में बीएसपी के उम्मीदवार ने 34,000 से अधिक वोट लिए थे, जो इस बार कांग्रेस के खाते में गए लगते हैं, जिससे कांग्रेस की स्थिति मजबूत हुई.

विजयपुर में हार का असर बीजेपी की राज्य की राजनीति पर पड़ेगा. पार्टी नेतृत्व, जिसमें प्रदेश अध्यक्ष वीडी शर्मा भी शामिल हैं, ने कार्यकर्ताओं से इस हार को स्थानीय हार मानने और इसे सरकार के प्रदर्शन पर जनमत संग्रह न मानने का आग्रह किया है. इसके बावजूद,  कांग्रेस के “पारंपरिक सीट” वाले नैरेटिव को इस जीत से और बल मिला है.

BJP की हार क्या कहती है?

बीजेपी के लिए, यह हार उन चुनौतियों को भी दल बदलू नेताओं को अपने पाले में शामिल करने की अपनी चुनौतियों को दर्शाती है. रावत जैसे नेताओं के पुराने राजनीतिक रिकॉर्ड के बोझ को संभालने और पारंपरिक कांग्रेस गढ़ों में सेंध लगाने में पार्टी की क्षमता पर सवाल खड़े हो गए हैं.

कांग्रेस के लिए विजयपुर में जीत एक मनोबल बढ़ाने वाली घटना है और इसकी जमीनी रणनीति की पुष्टि करती है. पार्टी ने इस उपचुनाव को अपनी परंपरागत वोटरों की निष्ठा की परीक्षा के रूप में पेश किया, और यह रणनीति सफल रही. प्रदेश अध्यक्ष जीतू पटवारी का कांग्रेस कार्यकर्ताओं के साहस और समर्पण को स्वीकार करना पार्टी के अपने जमीनी कार्यकर्ताओं को संगठित करने के प्रयास को दर्शाता है.

विजयपुर उपचुनाव ने मध्य प्रदेश में राजनीतिक समीकरणों की नाजुकता को उजागर किया है. बीजेपी के लिए, यह हार दिखाती है कि हाई-प्रोफाइल प्रचार और पाला बदलने वाले नेताओं के जरिए जीत हासिल करना पर्याप्त नहीं है. कांग्रेस के लिए, यह जीत उसके पारंपरिक गढ़ों में अपनी ताकत का पुन: प्रमाण है और खोई हुई जमीन वापस पाने का मौका है.

रामनिवास रावत की राजनीतिक यात्रा में हाल के वर्षों में कई उतार-चढ़ाव देखने को मिले हैं. 2020 में, जब ज्योतिरादित्य सिंधिया ने कांग्रेस छोड़कर भाजपा का दामन थामा, तब रावत ने कांग्रेस में बने रहने का निर्णय लिया. यह निर्णय उनके लिए चुनौतीपूर्ण साबित हुआ, क्योंकि वे सिंधिया परिवार के करीबी माने जाते थे. सिंधिया के भाजपा में शामिल होने के बाद, रावत को कांग्रेस में अपेक्षित सम्मान और पद नहीं मिला, जिससे वे असंतुष्ट हो गए.

जिस पर कांग्रेस ने किए प्रहार, उसे से लिया जीत का ‘हार’

कांग्रेस जिस कलेक्टर को बार बार हटाये जाने की मांग करती रही वहीं कलेक्टर कांग्रेस प्रत्याशी को जीत का प्रमाण दे रहे हैं. वैसे नरेन्द्र सिंह तोमर और प्रशासन कैबिनेट मंत्री रामनिवास रावत का साथ नहीं देता तो कांग्रेस की जीत का आंकड़ा 35 हजार तक जाता. विधानसभा अध्यक्ष तोमर के राजनीतिक भविष्य पर भी अब बड़ा सवाल होगा. उनके लोकसभा क्षेत्र में जाकर जयवर्धन सिंह और सत्यपाल सिकरवार नीटू ने मिलकर करारी शिकस्त दी है. कैबिनेट मंत्री रावत की पराजय से भाजपा में जाने वाले अन्य कांग्रेसी विधायकों को सोचने पर मजबूर कर दिया.

अब आगे क्या?

2024 में, रावत ने कांग्रेस छोड़कर भाजपा में प्रवेश किया. उनके मंत्री पद की शपथ ग्रहण समारोह में एक असमंजस की स्थिति उत्पन्न हुई, जब उन्होंने “राज्य मंत्री” के बजाय “राज्य के मंत्री” के रूप में शपथ ली, जिससे यह स्पष्ट नहीं हो सका कि वे कैबिनेट मंत्री हैं या राज्य मंत्री. इस गलती के कारण शपथ ग्रहण समारोह को 10 मिनट के भीतर दोबारा आयोजित करना पड़ा.

रावत की यह यात्रा दर्शाती है कि राजनीतिक दल बदलने के बाद भी स्पष्टता और स्थिरता की कमी हो सकती है. सिंधिया के भाजपा में शामिल होने के बाद रावत का कांग्रेस में रहना, फिर बाद में भाजपा में शामिल होना, उनके राजनीतिक निर्णयों में असमंजस को दर्शाता है. यह घटनाक्रम बताता है कि राजनीतिक परिवर्तनों के दौरान नेताओं को स्पष्ट रणनीति और निर्णय लेने की आवश्यकता होती है.

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आशीष मीणा पत्रकारिता में पाँच वर्षों का अनुभव रखते हैं। DAVV इंदौर से पत्रकारिता की पढ़ाई के बाद उन्होंने अग्निबाण सहित कई प्रतिष्ठित मीडिया संस्थानों में कार्य किया। उन्होंने जमीनी मुद्दों से लेकर बड़े घटनाक्रमों तक कई महत्वपूर्ण खबरें कवर की हैं।