5 लाख में BMW, Audi या मर्सिडीज! सेकंड-हैंड बाजार में इतनी सस्ती मिलती हैं लग्ज़री कारें, कीमतें जानकर चौंक जाएंगे

By Ashish Meena
दिसम्बर 27, 2025

Luxury Cars Second Hand Market: जब सड़क किनारे या ऑनलाइन लिस्टिंग में आप 5–10 लाख में BMW, Audi या Mercedes जैसी लग्जरी कार देखते हैं, तो पहली प्रतिक्रिया होती है… हैरानी. आखिर लाखों-करोड़ों की कीमत वाली ये कारें इतनी सस्ती कैसे हो सकती हैं. कई बार तो 4-5 साल पुराने मॉडल भी ऐसे दाम में बेचे जा रहे होते हैं, जिनपर विश्वास करना मुश्किल होता है. सोशल मीडिया ऐसे रील्स से पटा पड़ा है, जहां बेहद कम दाम में लग्ज़री सेकेंड हैंड कारों की बिक्री का दावा किया जा रहा है. यह कोई जादू नहीं, बल्कि एक ऐसा सिस्टम है जिसके बारे में ज़्यादातर लोग बिल्कुल नहीं जानते.

कई बार आप इन सेकेंड हैंड कारों को देखकर अंदाजा भी नहीं लगा पाते कि उनके भीतर कितनी कहानियां छिपी हैं. कुछ कहानियां जंग लगे चैसिस में दब चुकी हैं… कुछ दोबारा रंगी हुई बॉडी में… और कुछ उन हिस्सों में जो कभी किसी बड़े हादसे के गवाह रहे हैं. पुरानी कारों का बाजार आज उतना पारदर्शी नहीं है, जितना दिखता है. और इसी धुंध के पीछे छुपी है एक खतरनाक सच्चाई, जिसे जानना और बारीकी से समझना आपके लिए बेहद जरूरी है.

कार की IDV वैल्यू
कार खरीदते समय बीमा (इंश्योरेंस) अनिवार्य होता है. बीमा के साथ हर कार को एक इंश्योर्ड डिक्लेयर्ड वैल्यू (IDV) दी जाती है. यह वैल्यू हर साल होने वाले डेप्रिशिएशन के बाद तय होती है और भारी नुकसान या दुर्घटना की स्थिति में बीमा कंपनी इसी आंकड़े के आधार पर वाहन मालिक को भुगतान तय करती है. यानी टोटल लॉस की स्थिति में वाहन मालिक को उतनी रकम इंश्योरेंस कंपनी द्वारा दी जाएगी, जितनी की वाहन की IDV होगी.

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जब लग्जरी कार का एक्सीडेंट होता है
जब बीएमडब्ल्यू, ऑडी और मर्सिडीज बेंज जैसी लग्ज़री कारों का कोई बड़ा एक्सीडेंट होता है, तो इनकी मरम्मत का खर्च काफी ज्यादा होता है. इनके पार्ट्स और रिपेयर बेहद महंगे होते हैं. मान लीजिए BMW 3 Series का बड़ा एक्सीडेंट हो गया और वर्कशॉप में रिपेयर का अनुमान 25–30 लाख रुपये आ गया, जो कि इन ब्रांड्स के लिए बेहद सामान्य सी बात है. अगर उस कार की CVD वैल्यू 35–40 लाख रुपये है, तो बीमा कंपनी कार को रिपेयर कराने के बजाय उसे “टोटल लॉस” घोषित कर सकती है. इसका मतलब है कि कार को पूरी तरह ले-ऑफ कर दिया जाता है और मालिक को CVD के बराबर पैसा दे दिया जाता है. और यहीं से शुरू होता है असल खेल…

टोटल लॉस के बाद कार का क्या होता है
ज़्यादातर लोग मानते हैं कि टोटल लॉस कारें सीधे स्क्रैप में चली जाती हैं. हकीकत इससे बिल्कुल अलग है. बीमा कंपनियां ऐसी कारें स्पेशलाइज्ड वेंडर्स को बेच देती हैं. ये वेंडर्स तो कई बार सीधे मौके पर ही पहुंचकर कार की हालात देखते हैं और ये अंदाजा लगाते हैं कि उस कार को चलने की हालत में तैयार करने में लगभग कितना खर्च आएगा. ये वेंडर्स आम तौर पर IDV वैल्यू के 50–60% में कार खरीद लेते हैं. अगर IDV लगभग 30 लाख रुपये थी, तो उन्हें ये कार 18–20 लाख रुपये में हाथ लग जाती है.

वेंडर्स कैसे बनाते हैं कार को फिर से नया
ये वेंडर्स कार को बिल्कुल नए सिरे से खड़ा करते हैं. इस्तेमाल किए गए पार्ट्स, इम्पोर्टेड पार्ट्स, फैब्रिकेटेड कंपोनेंट्स और रिफर्बिश्ड स्ट्रक्चरल कंपोनेंट्स की मदद से पूरी गाड़ी दोबारा तैयार की जाती है. कई बार अधिकृत वर्कशॉप किसी कार को नॉन-रिपेरेबल घोषित कर देती है, लेकिन ये वेंडर्स उसे भी सड़क पर दौड़ने लायक बना देते हैं.

फिर होती है यूज़्ड कार मार्केट में एंट्री
रीबिल्ड होने के बाद वही कार 25–27 लाख रुपये में किसी यूज़्ड कार डीलर को बेच दी जाती है. डीलर उसे आगे 30 लाख रुपये के आसपास ग्राहक को ऑफर करता है. इस तरह कभी 80 लाख रुपये की रही कार कुछ ही हाथों में घूमकर 30 लाख रुपये में सेकंड हैंड बाजार में उपलब्ध हो जाती है. पुराने मॉडलों में IDV और भी कम होती है, इसलिए उनकी कीमत 5–10 लाख रुपये तक आ जाती है.

सबसे बड़ा सच और सबसे बड़ा रिस्क
इस पूरे खेल में सबसे अहम बात यह है कि खरीदार को अक्सर यह पता ही नहीं चलता कि कार कभी टोटल लॉस थी. जूरिस्डिक्शन बदलने, कागज़ात के ट्रांसफर और गैर-अधिकृत चैनलों के ज़रिये कार की हिस्ट्री को छिपा लिया जाता है. रही-सही कसर मैकेनिक और वेंडर्स पूरा कर देते हैं. वो कार को इस तरह से चमकाते हैं कि, खरीदार को एक्सीडेंट की भनक भी नहीं लगती है.

अव्यवस्थित बाजार
Primus Partners के मैनेजिंग डायरेक्टर अनुराग सिंह बताते हैं कि, “इस्तेमाल की गई कारों का बाजार खासकर कम कीमत वाले सेगमेंट में आज भी बुरी तरह अव्यवस्थित है. वे कहते हैं कि गंभीर रूप से दुर्घटनाग्रस्त कारों की मरम्मत बेहद महंगी और जटिल होती है. इसलिए ज्यादातर मामलों में ऐसी कारों को इंश्योरेंस कंपनियां टोटल लॉस घोषित कर देती हैं.”

स्क्रैप की कार और खतरनाक सौदा
अनुराग सिंह बताते हैं कि, “कई स्पेशलाइज्ड यूज्ड कार डीलर ऐसी टोटल लॉस कारों को कबाड़ (स्क्रैप) कीमत पर खरीद लेते हैं. फिर वे कम लागत में शॉर्टकट तरीके अपनाकर उन्हें ‘ठीक’ कर देते हैं. बाहर से देखने पर गाड़ी चमकती हुई दिखती है, लेकिन अंदर से वह भरोसे के लायक नहीं होती. नतीजतन ग्राहक को एक ऐसी कार मिल जाती है जो किसी भी वक्त धोखा दे सकती है.”

दुर्घटना का सच छुपाने की चालें
कई यूज़्ड कार डीलर ग्राहकों से बेहतर कीमत वसूलने के लिए कार के एक्सीडेंटल हिस्ट्री को छुपा लेते हैं. वे जानते हैं कि हादसों से गुजरी कारों को ग्राहक पसंद नहीं करते हैं. इसलिए वे कार की हिस्ट्री को दबा देते हैं और गाड़ी को सामान्य बताकर बेच देते हैं. दूसरी ओर ग्राहक भी इन डीलर्स की चिकनी-चुपड़ी बातों में फंस जाते हैं.

हिस्ट्री जांचने के तरीके, लेकिन मुश्किलें अनगिनत
कार का वास्तविक इतिहास जानने के कई उपाय मौजूद हैं, जैसे इंश्योरेंस क्लेम रिकॉर्ड, सर्विस हिस्ट्री और ओनरशिप हिस्ट्री. लेकिन ये जानकारी अलग-अलग जगहों पर बिखरी रहती है. इन्हें जुटाना मुश्किल होता है और कई बार भरोसेमंद भी नहीं होती हैं. एक आम आदमी के लिए, जिसके पास समय की कमी है उसके लिए तो ये टास्क ‘भूसे के ढ़ेर में राई का दाना’ ढूढ़ने जैसा होता है.

इंश्योरेंस रिकॉर्ड भी हमेशा सच नहीं बताते
अगर किसी दुर्घटना के बाद इंश्योरेंस क्लेम नहीं किया गया या डेटा लेट अपडेट हुआ तो हादसे की जानकारी रिकॉर्ड में दिखती ही नहीं. यानी ग्राहक को यह भी पता नहीं चलता कि वो जो कार खरीदने जा रहा है वो कभी हादसे का शिकार हुई थी. इसलिए कई बार इंश्योरेंस क्लेम भी पूरा सच बयां नहीं कर पाते हैं.

IDV और यूज्ड कारों की कीमत का उलझा चक्र
अनुराग सिंह बताते हैं कि, “IDV यानी इंश्योर्ड डिक्लेयर्ड वैल्यू का निर्धारण इस्तेमाल की गई कारों की कीमत पर आधारित होता है. और फिर IDV ही इस्तेमाल की गई कार की कीमत को प्रभावित करता है. यह एक तरह का सर्कुलर लॉजिक है जिसमें ग्राहक अक्सर उलझ जाता है. उससे भी बड़ी बात यह है कि ग्राहक के पास कम या ज्यादा IDV चुनने का विकल्प भी मौजूद होता है, जो स्थिति को और भ्रमित कर देता है. यानी ग्राहक चाहे तो नई कार की भी कम IDV चुन सकता है, इससे वो इंश्योरेंस प्रीमियम को कम कर सकता है.”

इसे एक मामले से समझा जा सकता है…
ऐसा ही एक मामला बीते दिनों सामने आया था. जिसमें गाजियाबाद के रहने वाले मोहित की होंडा अमेज कार का बुरी तरह एक्सीडेंट हुआ था. एक्सीडेंट इतना भयानक था कि, तेज रफ्तार कार सड़क के डिवाइडर से जा टकराई थी, जिससे सामने का इंजन का पूर हिस्सा डैशबोर्ड को तोड़ते हुए अंदर की तरफ (फ्रंट-रो) में घुस गया था. खैर, खुशकिस्मती यह रही कि कार चालक की जान बच गई.

लेकिन इस मामले में होंडा के ही डीलरशिप ने कार की रिपेयरिंग का खर्च लाखों रुपये में बताया था, जो कि कार के एक्चुअल IDV (तकरीबन 3.80 लाख रुपये) के आसपास थी. ऐसे में डीलरशिप ने कार को टोटल लॉस में भेजने की सलाह दी. जिसके बदले उन्हें IDV की पूरी रकम इंश्योरेंस कंपनी द्वारा दी गई.

इस मामले में जब लोकल वेंडर कार को पिक करने डीलरशिप पर आया तो उसके मैकेनिक ने कार की पूरी जांच की. इस दौरान बातचीत में उसने बताया कि, कार तो बुरी तरह डैमेज है लेकिन इसे ठीक किया जा सकता है. यानी चलने लायक बनाया जा सकता है. इसके लिए उसने तकरीबन 1.5 से 2 लाख रुपये तक का खर्च बताया. जब वेंडर से पूछा गया कि, वो इस कार का क्या करेगा तो उसने कहा कि, “वो इसके जरूरी पार्ट्स की मरम्मत कर इसे चलने लायक बनाएगा और बाजार में बेच देगा. ऐसे बहुत से खरीदार हैं जो कम खर्च में केवल चलने लायक कार खरीदना चाहते हैं.”

पुराने वाहन खरीदते समय ध्यान रखें ये बातें
देश के प्रमुख यूज़्ड कार प्लेटफॉर्म स्पिनी के सीनियर वाइस प्रेसिडेंट गुरवीन बेदी ने बताया कि, “ऑर्गनाइज़्ड प्लेटफॉर्म ही पुरानी गाड़ी खरीदने और बेचने के सबसे सुरक्षित तरीकों में से एक है. सर्टिफाइड प्लेटफॉर्म का फुल-स्टैक ऑपरेशन यह पक्का करता है कि खरीदारों और बेचने वालों को ट्रांजैक्शन के दौरान गाड़ी की क्वालिटी और प्रोसेस की ईमानदारी दोनों का भरोसा रहे.” बकौल गुरवीन पुराने वाहन खरीदते समय कुछ ख़ास बातों का ध्यान रखना बेहद जरूर है जैसे-

कार की क्वालिटी: पक्का करें कि गाड़ी अच्छी कंडीशन में हो और उसकी ठीक से देखभाल की गई हो. इसके लिए उसकी सर्विस हिस्ट्री देखें.
वेरिफाइड डॉक्यूमेंटेशन: चेक करें कि गाड़ी पर कोई लोन बाकी न हो, RC और इंश्योरेंस वैलिड हो, और कोई पेंडिंग चालान या FIR न हो.
RC डिटेल्स वेरिफाई: भविष्य में कानूनी दिक्कतों से बचने के लिए RC पर सभी डिटेल्स वेरिफाई करें.
वारंटी चेक: कन्फर्म करें कि कोई वारंटी या बिक्री के बाद सपोर्ट उपलब्ध है या नहीं, जिससे खरीदने के बाद आपको भी इसके कवरेज का लाभ मिले.
ट्रांजैक्शन में पारदर्शिता: चेक करें कि सभी प्रोसेस और डॉक्यूमेंट्स को साफ तौर पर ट्रैक और वेरिफाई किया गया हो, जिससे ओनरशिप ट्रांसफर आसान हो.

व्हीकल हिस्ट्री कैसे जांचे
गुरवीन बेदी बताते हैं कि, “सबसे पहले VAHAN पोर्टल पर यह देखें कि गाड़ी पर कोई ओपन लोन तो नहीं है और संबंधित बैंक से लोन क्लोजर, बकाया राशि व किसी भी लिंक्ड या टॉप-अप लोन की पुष्टि करें. क्योंकि ज्यादातर यूज़्ड कार फ्रॉड ओपन लोन से जुड़े होते हैं और संभव हो तो विक्रेता की CIBIL प्रोफाइल भी जांची जानी चाहिए.”

उन्होंने आगे सुझाया कि “इसके बाद कार के इंश्योरेंस दस्तावेज़ सीधे इंश्योरेंस कंपनी से वेरिफाई करें, क्योंकि AI-जनरेटेड फर्जी डॉक्यूमेंट्स के मामले तेजी से बढ़ रहे हैं. साथ ही पुलिस की आधिकारिक वेबसाइट्स पर जाकर यह जांचना भी जरूरी है कि वाहन से जुड़ा कोई FIR, चोरी का केस या अन्य कानूनी मामला लंबित तो नहीं है. अंत में RC पर दर्ज इंजन नंबर, चेसिस नंबर और मालिक से जुड़ी सभी जानकारियों का सही तरीके से मिलान करें, क्योंकि छोटी-सी गलती भी भविष्य में बड़ी कानूनी और ओनरशिप ट्रांसफर से जुड़ी समस्याएं पैदा कर सकती है.”

पुरानी यानी सेकंड हैंड कारों का बाजार भले ही बढ़ रहा हो, लेकिन पारदर्शिता की कमी अभी भी एक बड़ा सवाल है. एक्सपर्ट का यही कहना है कि ग्राहकों को सावधान रहना होगा और खरीदारी से पहले कार के हिस्ट्री की गहन जांच जरूर करनी चाहिए. एक छोटी सी लापरवाही आगे चलकर बड़ा खतरा बन सकती है.

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आशीष मीणा हिंदी पत्रकार हैं और राष्ट्रीय तथा सामाजिक मुद्दों पर लिखते हैं। उन्होंने पत्रकारिता की पढ़ाई की है और वह तथ्यात्मक व निष्पक्ष रिपोर्टिंग पर ध्यान केंद्रित करते हैं।