CAA, तीन तलाक, UCC और अब वक्फ बिल…मुस्लिम समाज से जुड़े वो फैसले जहां भारी विरोध के बावजूद अडिग रही मोदी सरकार
By Ashish Meena
अप्रैल 2, 2025
Wakf Amendment Bill : नागरिकता संशोधन अधिनियम (CAA), तीन तलाक का खात्मा और यूनिफॉर्म सिविल कोड (UCC) की दिशा में बढ़ते कदम, 2014 में सत्ता में आने के बाद नरेंद्र मोदी सरकार ने कुछ ऐसे बड़े फैसले लिए गए हैं, जो मुस्लिम समाज से सीधे तौर पर जुड़े हैं. नरेंद्र मोदी सरकार के इन फैसलों ने व्यापक बहस, समर्थन और विरोध को जन्म दिया. CAA के खिलाफ तो देश के कुछ राज्यों में तो हिंसक विरोध भी हुआ. कई लोगों की जानें भी गईं.
देश के प्रमुख मुस्लिम संगठनों ने मोदी सरकार के इन फैसलों को धार्मिक स्वतंत्रता और पहचान पर खतरा बताया. इसे धार्मिक मामलों में सरकार और सरकारी तंत्र का ओवररीच कहा गया. लेकिन मोदी सरकार ने इन्हें समय और परिस्थिति के अनुरुप लिया गया प्रगतिशील फैसला बताया. सरकार ने तर्क दिया कि ये फैसले सुधार और समानता की दिशा में बढ़ाए गए कदम हैं.
तत्कालीन कानून मंत्री रविशंकर प्रसाद ने 28 दिसंबर, 2017 को लोकसभा में मुस्लिम महिला (विवाह अधिकार संरक्षण) विधेयक, 2017 पेश किया था. बीजेपी ने कहा कि इस बिल का उद्देश्य तीन तलाक को अवैध घोषित करना था. यह विधेयक मुस्लिम महिलाओं के अधिकारों की रक्षा करने और उन्हें उनके पतियों द्वारा मनमाने ढंग से तलाक दिए जाने से बचाने के लिए था.
विधेयक में ऐसा करने वाले शौहर के लिए 3 साल तक की सजा का प्रावधान था. बता दें कि सुप्रीम कोर्ट ने 22 अगस्त 2017 को तीन तलाक को असंवैधानिक ठहराया था, जिसके बाद सरकार ने इसे आपराधिक बनाने के लिए कानून बनाया. ये बिल जुलाई 2019 में कानून बना. तब मुस्लिम संगठनों ने इस कानून का तीव्र विरोध किया था.
ऑल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड (AIMPLB) ने कहा कि ये कानून “मुस्लिम परिवारों को तोड़ने वाला” है. AIMIM सांसद असदुद्दीन ओवैसी ने संसद में और बाहर इसका विरोध किया. दारुल उलूम देवबंद ने इसे गैर-जरूरी करार दिया और लखनऊ और इलाहाबाद में मुस्लिम संगठनों ने प्रदर्शन किए. मुंबई में ऑल इंडिया मजलिस-ए-मुशावरात जैसे संगठनों ने इसका विरोध जताया और इसे मुस्लिम पुरुषों को निशाना बनाने वाला बताया.
मुस्लिम नेताओं का कहना था कि यह कानून मुस्लिम पुरुषों को निशाना बनाता है और पारिवारिक विवादों को आपराधिक बनाता है. हालांकि कई महिला संगठनों ने इस कानून का सपोर्ट किया और कहा कि ये मुस्लिम महिलाओं को अधिकार देता है और उनकी सामाजिक स्थिति को मजबूत करता है.
नागरिकता संशोधन कानून 2019
तीन तलाक उन्मूलन के बाद नागरिकता संशोधन कानून लाना नरेंद्र मोदी सरकार का बड़ा कदम था. इससे भारत के मुसलमान सीधे तौर पर प्रभावित नहीं होते थे. देश में मुस्लिम संगठनों ने इस कानून का सबसे तीव्र विरोध किया. यूपी में इस कानून के विरोध में हिंसा हुई. पुलिस को फायरिंग भी करनी पड़ी.
दिसंबर 2019 में पारित नागरिकता संशोधन कानून (CAA) 2019 का उद्देश्य तहत पाकिस्तान, बांग्लादेश और अफगानिस्तान से आए हिंदू, सिख, बौद्ध, जैन, पारसी और ईसाई शरणार्थियों को नागरिकता देना था. इस कानून के दायरे से मुस्लिमों को बाहर रखा गया. मुस्लिमों ने इसी को लेकर इसका विरोध किया और इस कानून विभाजनकारी और भेदभाव वाला बताया.
CAA को 9 दिसंबर 2019 को पेश कर 11 दिसंबर 2019 को पास किया गया, जिसके बाद देश भर में हिंसक और शांतिपूर्ण दोनों तरह के विरोध प्रदर्शन हुए. मुस्लिम संगठनों ने बिना समझे इस कानून को राष्ट्रीय नागरिक रजिस्टर (NRC) के साथ जोड़ा. इस वजह से मुस्लिम समुदाय में असुरक्षा फैली, देश भर में व्यापक प्रदर्शन हुए. मुस्लिम समुदाय और विपक्ष ने इस कानून को भेदभावपूर्ण माना और कहा कि यह कानून धर्म के आधार पर नागरिकता को परिभाषित करता है.
इसी कानून के विरोध में चर्चित शाहीन बाग आंदोलन हुआ जो कई महीनों तक चला. इस आंदोलन में मुस्लिम समाज की महिलाएं बढ़-चढ़ कर आगे आईं. हालांकि सरकार ने तर्क दिया कि यह कानून धार्मिक उत्पीड़न से पीड़ित अल्पसंख्यकों को शरण देने के लिए है न कि मुस्लिमों के खिलाफ है. इस कानून से किसी की नागरिकता नहीं जाएगी.
यूनिफॉर्म सिविल कोड (UCC)
यूनिफॉर्म सिविल कोड बीजेपी सरकार का अहम एजेंडा है. बीजेपी अपने घोषणापत्र में भी इसका जिक्र करती आई है. केंद्रीय स्तर पर UCC अभी तक कानून नहीं बना है, लेकिन मोदी सरकार ने इसे लागू करने की दिशा में इरादा जताया है. बीजेपी शासित उत्तराखंड में UCC लागू हो गया है. जबकि गुजरात इस कानून को लागू करने की तैयारी में है. वहां इस कानून की आवश्यकता का आकलन करने के लिए सीएम भूपेंद्र पटेल ने एक कमेटी बनाई है. हाल ही में विधि मंत्री रुशिकेश पटेल ने राज्य विधानसभा में कहा कि यूसीसी राज्य के सभी लोगों के लिए समान न्याय सुनिश्चित करने और एक भारत श्रेष्ठ भारत की अवधारणा को साकार करने की दिशा में एक कदम है.
यूसीसी सभी धर्मों के लिए एक समान व्यक्तिगत कानून (विवाह, तलाक, उत्तराधिकार आदि) की बात करता है. सरकार का तर्क है कि यूसीसी से लैंगिक समानता और राष्ट्रीय एकता को बढ़ावा देगा. संविधान के अनुच्छेद 44 में भी इसका उल्लेख है. लेकिन मुस्लिम संगठनों, खासकर AIMPLB ने इसे मुस्लिम पर्सनल लॉ (शरीयत) पर हमला बताया है और कहा है कि ये कानून धार्मिक अधिकारों में अतिक्रमण है. मुस्लिम समुदाय के एक वर्ग को डर है कि इससे उनकी सांस्कृतिक और धार्मिक पहचान खत्म हो जाएगी.
इस कानून को इसे बहुसंख्यकवादी एजेंडे के तहत देखा जा रहा है जिससे टकराव बढ़ने की आशंका है. UCC को लेकर अभी बहस जारी है, लेकिन मुस्लिम समुदाय में इसे लेकर असुरक्षा और विरोध की भावना मजबूत हुई है.
वक्फ (संशोधन) विधेयक, 2025
अब इन तीन कदमों के बाद नरेंद्र मोदी सरकार वक्फ (संशोधन) विधेयक, 2025 के साथ आगे बढ़ गई है. पहली बार अगस्त 2024 में लोकसभा में पेश किया गया यह बिल वक्फ बोर्ड के प्रबंधन और संपत्तियों में सुधार के लिए है, इसमें गैर-मुस्लिम सदस्यों को शामिल करने, संपत्ति सर्वेक्षण और पारदर्शिता जैसे प्रावधान हैं.
केंद्र सरकार का तर्क है कि इस कानून का उद्देश्य वक्फ संपत्तियों में भ्रष्टाचार और दुरुपयोग को रोकना साथ ही महिलाओं और पिछड़े मुस्लिमों को लाभ पहुंचाना है. वहीं AIMPLB और जमीयत उलेमा-ए-हिंद जैसे संगठनों ने इसे वक्फ की स्वायत्तता पर हमला बताया और कहा कि सरकार की मंशा के अनुसार गैर-मुस्लिमों को बोर्ड में शामिल करना को धार्मिक मामलों में दखल है.
