Kannod News : पूर्व मुख्यमंत्री दिग्विजय सिंह ने गुरुवार को देवास जिले के कन्नौद पहुंचकर खिवनी अभ्यारण्य के 15 गांवों के आदिवासी परिवारों से मुलाकात की। यह मुलाकात विशेष रूप से तब हुई जब वन विभाग द्वारा कथित तौर पर उनके मकानों को तोड़ा गया था, जिससे पीड़ित परिवार न्याय की उम्मीद में वहां मौजूद थे। इस दौरान दिग्विजय सिंह ने न सिर्फ उनकी समस्याओं को सुना, बल्कि वन विभाग के अधिकारियों से फोन पर बात कर उन्हें बड़ा आश्वासन भी दिलवाया, जिसने आदिवासियों के चेहरों पर मुस्कान ला दी।
वन विभाग के अधिकारियों से सीधी बातचीत
कार्यक्रम स्थल पर पहुंचते ही दिग्विजय सिंह ने सबसे पहले अलग-अलग गांवों से आए आदिवासी भाई-बहनों से उनकी समस्याओं की जानकारी ली। ग्रामीणों से सीधी बातचीत के लिए वन विभाग के अधिकारियों को भी बुलाया गया था, लेकिन वे एक राजनीतिक कार्यक्रम का हवाला देकर आने से कतराते रहे।
इसके बाद दिग्विजय सिंह ने मंच पर मौजूद नेताओं को नीचे बैठा दिया और फ्लेक्स भी हटवा दिए, ताकि यह पूरी तरह से आदिवासियों के मुद्दों पर केंद्रित एक संवाद लगे। अंततः, डीएफओ वीरेंद्र पटेल ने फोन पर अपनी बात रखने की सहमति दी।
‘किसी भी गांव को नहीं हटाया जाएगा’: डीएफओ का आश्वासन
कांग्रेस जिलाध्यक्ष मनीष चौधरी ने फोन दिग्विजय सिंह को दिया। दिग्विजय सिंह ने डीएफओ की बातचीत को लाउडस्पीकर के माध्यम से सभी ग्रामीणों तक पहुँचाया। डीएफओ ने स्पष्ट शब्दों में कहा, “किसी भी गांव को विस्थापित नहीं किया जाएगा।” जब ग्रामीणों की ओर से इस बात का लिखित आश्वासन मांगा गया, तो डीएफओ ने इसके लिए भी हामी भर दी। यह सुनकर सभी आदिवासियों ने तालियां बजाकर खुशी जाहिर की।
‘आप मुझे भी आदिवासी ही मान लो’: दिग्विजय सिंह
इस दौरान 2-3 परिवार अपने साथ पुराने दस्तावेज लाए थे, जो 2005 से पहले वन भूमि पर उनके कब्जे का प्रमाण थे। दिग्विजय सिंह ने उन्हें आश्वस्त किया कि उनके कागजात अलग से डीएफओ को भिजवाए जाएंगे। डीएफओ से बातचीत खत्म करते हुए दिग्विजय सिंह ने एक भावुक बात कही, “यहां कोई नेता नहीं है, आप मुझे भी आदिवासी ही मान लो।”
इस कार्यक्रम में दिग्विजय सिंह करीब 45 मिनट तक रहे और एक बार भी कुर्सी पर नहीं बैठे। उनके साथ उनकी पत्नी अमृता सिंह और पूर्व विधायक कैलाश कुंडल की पत्नी राजकुमारी कुंडल ही मंच पर बैठी थीं। दिग्विजय सिंह ने इस कार्यक्रम के सूत्रधार राहुल इनानिया को विशेष महत्व दिया, जिन्होंने आदिवासियों की भोपाल पदयात्रा का नेतृत्व किया था।
इन गांवों के आदिवासी थे मौजूद
इस कार्यक्रम में भिलाई, कोलारी, सातल, ओंकारा, कंकड़दी, नंदादाई, उतवाली, चीकालपट, सागोनिया, कालीबाई, खिवनी खुर्द, पटरानी, निवारदी, मचवास जैसे कई गांवों से आए आदिवासी, कांग्रेस पदाधिकारी और कार्यकर्ता मौजूद थे। इस घटना ने एक बार फिर आदिवासी अधिकारों और वन भूमि के मुद्दों को सुर्खियों में ला दिया है।