इंदौर में बस से बाइक टकराने पर जान गंवाने वाला सोलंकी परिवार खंडवा के गौल सैलानी गांव का निवासी था। दंपती और दोनों बेटों के शव गुरुवार देर शाम को गांव पहुंचे, जहां उनका अंतिम संस्कार किया गया। एक साथ चार अर्थियां उठीं तो देखने वालों की आंखें नम हो गईं। हर कोई सिसक उठा। कावेरी नदी के किनारे बने श्मशान घाट पर दोनों बेटों के शवों को माता-पिता के बीच रखकर मुखाग्नि दी गई।
हादसा 17 सितंबर की देर रात इंदौर में उज्जैन रोड पर रिंगनोदिया गांव के पास हुआ। बाणेश्वरी ट्रेवल्स की तेज रफ्तार बस नंबर MP09 FA 6390 ने बाइक नंबर MP09 VF 3495 को टक्कर मार दी थी। महेंद्र सोलंकी (45), उनकी पत्नी जयश्री सोलंकी (40), बड़े बेटे जिगर सोलंकी (16) ने मौके पर दम तोड़ दिया जबकि छोटे बेटे तेजस सोलंकी (12) की अस्पताल में इलाज के दौरान मौत हो गई थी।
काकी के अंतिम संस्कार में शामिल होने भोपाल गए थे
महेंद्र सोलंकी के काका का परिवार भोपाल में रहता है। मंगलवार को उनकी काकी का निधन हो गया था। अंतिम संस्कार में शामिल होने के लिए महेंद्र और उनकी पत्नी जयश्री बुधवार को भोपाल के लिए निकले।
महेंद्र पूरे परिवार के साथ इंदौर में ही रहने वाले बड़े भाई बाबूसिंह के घर गए। वहां से कार लेकर पति-पत्नी भोपाल निकल गए जबकि दोनों बेटे बड़े भाई के घर ही रुक गए थे। अंतिम संस्कार होने के बाद महेंद्र और जयश्री कार से इंदौर लौटे। बड़े भाई के घर कार रखकर एक ही बाइक से परिवार के चारों सदस्य अपने घर आ रहे थे। इसी दौरान बस ने बाइक को सामने से टक्कर मार दी।
बेटे की परीक्षा के कारण रात में ही निकले
बड़े भाई बाबूसिंह ने तेज बारिश का हवाला देते हुए महेंद्र को रोकने की कोशिश की थी, लेकिन सुबह बेटे जिगर की परीक्षा होने से परिवार ने इनकार कर दिया। सभी लोग रात में ही घर के लिए रवाना हो गए। करीब एक घंटे बाद भी घर पहुंचने की खबर नहीं आई तो बाबूसिंह की बेटी ने महेंद्र को फोन लगाया। तब उनको हादसे की जानकारी मिली।
8 दिन पहले मकान की स्लैब ढलवाई थी
इंदौर में तीन इमली इलाके में रहने वाले महेंद्र सोलंकी चाय-नाश्ते का स्टार्टअप चला रहे थे। दो साल पहले ही उन्होंने एक प्लॉट खरीदा था, जिस पर मकान बनाने का काम जारी था। 8 दिन पहले ही इसकी स्लैब ढली थी।
परिजन ने बताया कि महेंद्र और जयश्री प्लानिंग कर रहे थे कि घर में कौन-सी टाइल्स लगवाना है। एक-दो दिन में खरीदारी के लिए जाने वाले थे। लंबे समय से किराए के मकान में रह रहा परिवार अपने घर को लेकर एक्साइटेड था। वे जहां भी जाते थे, रिश्तेदारों से कहते थे कि नए मकान के गृह प्रवेश का कार्यक्रम करेंगे। आप लोगों को आना है।
परिवार में तीन भाई, महेंद्र मंझले थे
गौल सैलानी के मूल निवासी सरदार सिंह सोलंकी की तीन संतानों में महेंद्र मंझले थे। 16-17 साल की उम्र में महेंद्र और उनके बड़े भाई बाबूसिंह इंदौर चले आए थे। यहां रहकर मजदूरी करने लगे। छोटा भाई शिवसिंह गांव में रहकर खेती संभालता है। फिलहाल, बाबूसिंह प्राइवेट कंपनी में नौकरी करते हैं। महेंद्र ने बीते कुछ साल से मूसाखेड़ी में चाय-नाश्ते की दुकान खोल ली थी।