फिर इतिहास रचने की तैयारी में ISRO, सोलर मिशन की करेगा लॉन्चिंग, खास है ये ‘उड़ान’
By Ashish Meena
November 29, 2024
ISRO : 4 दिसंबर को ISRO एक और बड़ी उपलब्धि हासिल करने जा रहा है. श्रीहरिकोटा स्थित सतीश धवन अंतरिक्ष केंद्र से 4 दिसंबर की शाम करीब 4 बजे प्रोबा-3 की लॉन्चिंग होगी. खास बात ये है कि यूरोपीय स्पेस एजेंसी का यह सोलर मिशन इसरो के PSLV रॉकेट से लॉन्च किया जाएगा. यूरोपी स्पेस एजेंसी (ESA) के प्रोबा सीरीज का यह तीसरा सोलर मिशन है, इससे पहले ESA के प्रोबा-1 को भी इसरो ने ही साल 2001 में लॉन्च किया था.
वहीं प्रोबा-2 की लॉन्चिंग 2009 में हुई थी. प्रोबा-3 मिशन के लिए स्पेन, बेल्जियम, पोलैंड, इटली और स्विट्ज़रलैंड की टीमें काम कर रहीं हैं. यूरोपीय स्पेस एजेंसी के प्रोबा-3 मिशन की लागत करीब 1780 करोड़ रुपए है, जिसकी उम्र करीब 2 साल होगी. इसे 600 गुणा 60530 किलोमीटर वाली अंडाकार ऑर्बिट में भेजा जाएगा, जिसकी ऑर्बिटल पीरियड करीब 19.7 घंटे होगी.
प्रोबा-3 मिशन को इस तरह से डिजाइन किया गया है कि इसमें 2 सैटेलाइट को एक साथ लॉन्च किया जाएगा, जो एक-दूसरे से अलग उड़ान भरेंगे लेकिन सिंक्रोनाइज होकर सूर्य के आसपास अपनी कक्षा में काम करेंगे. दोनों सैटेलाइट एक सोलर कोरोनाग्राफ बनाएंगे, जिससे वातावरण में सूर्य से निकलने वाली तीव्र रोशनी को रोका जा सके.
सोलर मिशन में क्या करेगा प्रोबा-3?
सूर्य के कोरोना का तापमान 2 मिलियन डिग्री फेरनहाइट तक जाता है, लिहाजा किसी भी उपकरण के जरिए करीब से इसका अध्ययन करना बेहद मुश्किल है. फिर भी वैज्ञानिक अध्ययन और अंतरिक्ष के सभी मौसम और इससे जुड़े टर्बुलेंस जैसे- सोलर तूफान, सोलर हवाओं के लिए यह जरूरी है, जो कि सूर्य को कोरोना से ही निकलते हैं. यह सारी घटनाएं अंतरिक्ष के मौसम को प्रभावित करती हैं, साथ ही सैटेलाइट आधारित संचार, नेविगेशन और पृथ्वी पर लगे पावर ग्रिड के संचालन में बाधा डाल सकती है. इन तमाम चीजों के अध्ययन के लिए प्रोबा-3 में 3 उपकरण लगाए गए हैं.
3 उपकरणों के जरिए सूर्य का अध्ययन
पहला ASPIICS इंस्ट्रूमेंट जिसे कोरोनाग्राफ भी कह सकते हैं, यह सूर्य के इनर कोरोना और आउटर कोरोना के बीच बने काले घेरे यानी गैप की स्टडी करेगा. यह एक गोलाकार क्षेत्र है जिसे आमतौर पर सूर्य ग्रहण के दौरान आसानी से देखा जा सकता है. इस उपकरण में एक 1.4 मीटर के डाइमीटर वाला ऑकल्टर डिस्क लगा है जो सूर्य से आने वाली रोशनी को रोकेगा और इस क्षेत्र की करीबी तस्वीर मुहैया कराएगा.
इसके अलावा प्रोबा-3 में डिजिटल अब्सोल्यूट रेडियोमीटर (DARA) लगाया गया है, जो सूर्य से निकलने वाली कुल ऊर्जा का लगातार मापन करेगा. प्रोबा-3 में एक 3D एनर्जेटिक इलेक्ट्रॉन स्पेक्टोमीटर (3DEES) उपकरण लगाया गया है जो अंतरिक्ष के मौसम अध्ययन के लिए डाटा मुहैया कराएगा.
प्रोबा-3 मिशन में क्या खास है?
प्रोबा-3 मिशन में 2 सैटेलाइट हैं, एक ऑकल्टर स्पेसक्राफ्ट जिसका वजन 200 किलोग्राम है और दूसरा कोरोनाग्राफ स्पेसक्राफ्ट जिसका वजन 340 किलोग्राम है. यह दोनों मिलकर प्राकृतिक सूर्यग्रहण जैसी नकल बनाएंगे.
एक प्राकृतिक सूर्यग्रहण के दौरान सूर्य की भौतिकी को ऑब्जर्व करने और कोरोना के अध्ययन के लिए सिर्फ 10 मिनट का समय मिलता है. लेकिन प्रोबा-3 इसके लिए 6 घंटे का समय देगा जो सालाना करीब 50 प्राकृतिक सूर्यग्रहण की घटना के बराबर होगा. इससे सूर्य के कोरोना का गहन अध्ययन करने में मदद मिलेगी जो अब तक नहीं की गई.
ऑकल्टर और कोरोनाग्राफ दोनों अपनी कक्षा से लगातार सूर्य का सामना करते रहेंगे. इस दौरान यह कुछ मिलीमीटर की दूरी पर एक फॉर्मेशन बनाकर उड़ते रहेंगे और फिर दिन में एक बार करीब 6 घंटे के लिए एक-दूसरे से 150 मीटर की दूरी पर रहेंगे.
