Vice Presidential Post : जगदीप धनखड़ के उपराष्ट्रपति पद से इस्तीफे को राष्ट्रपति द्रोपदी मुर्मू ने स्वीकार कर लिया है. उधर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने एक्स पर लिखकर उनके उत्तम स्वास्थ्य की कामना की है. जाहिर है कि अब धनखड़ की वापसी की बची खुची उम्मीद भी खत्म हो चुकी है. संविधान के अनुच्छेद 68 के तहत, उनके उत्तराधिकारी का चुनाव छह महीने के भीतर, यानी सितंबर 2025 तक पूरा करना अनिवार्य है.
यानि कि बिहार विधानसभा चुनावों के पहले यह नियुक्ति हो जानी है. जाहिर है कि बीजेपी सरकार चाहेगी कि इस अवसर का लाभ बिहार विधानसभा चुनावों में भी उठाया जाए. अगर देश में पिछले 10 सालों में संवैधानिक पदों पर हुई नियुक्तियों पर नजर डालें तो यह क्लियर हो जाएगा कि भारतीय जनता पार्टी सरकार नियुक्तियों के लिए आधार हमेशा आगामी चुनावों को ही बनाती रही है.
उपराष्ट्रपति भारत का दूसरा सबसे महत्वपूर्ण संवैधानिक पद है. वह राज्य सभा का पदेन सभापति भी होता है. संविधान के अनुच्छेद 66 के अनुसार, उपराष्ट्रपति का चुनाव संसद के दोनों सदनों लोक सभा और राज्य सभा के निर्वाचित और मनोनीत सदस्यों द्वारा गुप्त मतदान के माध्यम से किया जाता है. पर संसद में आजकल जैसा सत्ताधारी पार्टियां चाहती हैं वही होता है.पार्टियां व्हिप जारी करती हैं और मतदान पार्टी के मुख्य सचेतक के हिसाब से होता है. जाहिर है कि उपराष्ट्रपति वही बनेगा जो बीजेपी चाहेगी. और बीजेपी के फैसले पर बिहार विधानसभा चुनावों की छाप होगी.
बिहार चुनावों को ध्यान में रखते हुए तीन नामों की चर्चा
बिहार चुनावों को ध्यान में रखते हुए देखा जाए तो राज्यसभा के उपसभापति हरिवंश नारायन सिंह और स्वर्गीय कर्पूरी ठाकुर के पुत्र राम नारायण ठाकुर के नाम की चर्चा चल रही है. इसके अलावा बहुत से लोग नीतीश कुमार का भी नाम ले रहे हैं. पर नीतीश कुमार शायद ही उपराष्ट्रपति के लिए तैयार हों. दूसरे उनका स्वास्थ्य राज्यसभा के सभापति के लिए ठीक नहीं समझा जा सकता.
चूंकि उपराष्ट्रपति राज्यसभा का पदेन सभापति होता है इसलिए जो भी इस पद पर बैठेगा उसे राज्यसभा की लंबी कार्यवाही से संबंधित तमाम फैसले लेने होंगे. मुख्यमंत्री और राष्ट्रपति दोनों ही पदों पर एक बार किसी सहयोगी के माध्यम से कार्य हो सकता है पर राज्यसभा के सभापति के लिए किसी दूसरे के भरोसे कार्य नहीं किया जा सकता.
रामनाथ ठाकुर के उपराष्ट्रपति बनने से निसंदेह बीजेपी को आगामी चुनावों में ईबीसी कैटेगरी में पैठ बनाने में सहायता मिलेगी.पर अभी लोकसभा चुनावों के पहले ही उनके पिता को मरणोपरांत भारत रत्न दिया गया है. इसलिए उम्मीद कम है कि रामनाथ ठाकुर के नाम को आगे बढ़ाया जाए. इस तरह हरिवंश नारायण सिंह सबसे फिजिबल उम्मीदवार बनकर उभर रहे हैं. एक तो वह सहयोगी दल जेडीयू से हैं, दूसरे प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के विश्वसनीय भी हैं.तीसरे राज्यसभा के उपसभापति होने के चलते उन्हें इस पद का अनुभव भी है. पर बीजेपी में शाह और मोदी युग में चीजों को समझना इतना आसान नहीं है. जिस किसी शख्स का नाम चर्चा में आया समझो उसे वो पद नहीं मिलने वाला है. फिर भी हरवंश नारायण सिंह का नाम सबसे आगे चल रहा है.
बीजेपी की अंदरूनी पॉलिटिक्स, नड्डा भी रेस में
बीजेपी और आरएसएस के बीच पार्टी अध्यक्ष को लेकर लगातार मंथन हो रहा है. इस बीच तमाम तमाम ऐसी खबरें आ रहीं हैं कि निर्मला सीतारमण और वसुंधरा राजे जैसे नामों को भी आगे बढ़ाया जा सकता है. हालांकि,देश की राष्ट्रपति एक महिला के होने के चलते ज्यादा उम्मीद है कि पुरुष उम्मीदवार को प्राथमिकता मिल सकती है.
इनमें राजनाथ सिंह का नाम सबसे ऊपर चल रहा है.यद्यपि सिंह को उपराष्ट्रपति बनाए जाने के पीछे कोई आधार नहीं दिख रहा है. क्योंकि वो बीजेपी के बहुत से रायते साफ करते रहते हैं. उन्होंने केंद्र में अपनी महत्ता बनाए रखी है. दूसरे व मोदी व शाह के नेतृत्व को स्वीकार कर चुके हैं. इसके साथ ही रक्षा मंत्रालय में चल रहे कई प्रोजेक्ट्स में उनकी महत्वपूर्ण भूमिका उनकी उम्मीदवारी को कमजोर करती है.
केंद्रीय सड़क परिवहन नितिन गडकरी का भी नाम उपराष्ट्रपति पद के दावेदारों में लिया जा रहा है.इन्फ्रास्ट्रक्चर को लेकर किए जा रहे उनके कार्यों से सरकार की लोकप्रियता बढ़ी है.साथ ही आरएसएस की पृष्ठभूमि उनकी उपराष्ट्रपि बनने की संभावना को जीरो करती है.
निर्मला सीतारमण को उनके महिला होने और साऊथ का होने के चलते लाभ मिल सकता है. लेकिन राष्ट्रपति के रूप में पहले से ही एक महिला होने के कारण उनकी संभावना भी कम हो जाती है.
जे.पी. नड्डा BJP राष्ट्रीय अध्यक्ष हैं. जिनका कार्यकाल मार्च 2025 में समाप्त हो रहा है. उनकी निकटता मोदी-शाह से है. अगर आरएसएस और बीजेपी के बीच सब कुछ ठीक नहीं हो सका है तो ये संभव हो सकता है कि उन्हें उपराष्ट्रपति बना दिया जाए. गौरतलब है कि नड्डा के एक बयान के बाद ही आरएसएस और बीजेपी के बीच दूरियां आ गईं थीं. कहा जाता है कि नड्डा के बयान के चलते ही आरएसएस ने 2024 के लोकसभा चुनावों से अपने को अलग कर लिया था. इस बीच बीजेपी में जम्मू-कश्मीर के उप राज्यपाल मनोज सिन्हा नाम भी बहुत तेजी से उभरा है. पर उनका सवर्ण (भूमिहार) और यूपी से होना उनके लिए विपरीत साबित हो रहा है.
सहयोगी दलों को ध्यान में रखते हुए 3 नाम
एनडीए के पास लोक सभा में 293 और राज्य सभा में 112 सांसद हैं, जो कुल 405 वोट बनाते हैं, जो जीत के लिए आवश्यक 394 वोटों से अधिक है. यह बहुमत सरकार को अपने पसंदीदा उम्मीदवार चुनने की स्वतंत्रता देता है. पर बिना सहयोगी दलों के समर्थन के बीजेपी कुछ नहीं कर सकती है. एनडीए में जनता दल (यूनाइटेड) (जद(यू)), तेलुगु देशम पार्टी (TDP), और शिवसेना जैसे सहयोगी शामिल हैं. गठबंधन के साथियों का विश्वास हासिल करने के लिए बीजेपी हरिवंश नारायण सिंह के नाम को आगे बढ़ा सकती है. जाहिर है कि इस फैसले से बिहार में 2025 के विधानसभा चुनावों एनडीए की एकता मजबूत हो सकती है.
विपक्षी इंडिया ब्लॉक के पास केवल 150 सांसद हैं, जिससे उनकी जीत की संभावना कम है. फिर भी, सरकार एक ऐसे उम्मीदवार को चुनेगी जो विपक्ष के साथ अनावश्यक टकराव से बचे. इस हिसाब से देखा जाए तो हरिवंश एनडीए के अनुभव पर अब तक खरे उतरे हैं.
कांग्रेस को घेरने के लिए क्या शशि थरूर का नाम आगे आएगा
बहुत से बड़े पत्रकारों ने एक्स हैंडल पर ट्वीट करके कांग्रेस से नाराज चल रहे शशि थरूर को उप राष्ट्रपति बनने की संभावना दिखाई है. शशि थरूर का नाम कांग्रेस को घेरने की रणनीति के तहत बीजेपी आगे बढ़ा सकती है. हाल के वर्षों में शशि थरूर ने कई बार केंद्र सरकार और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की नीतियों की तारीफ की है. उदाहरण के लिए, उन्होंने ऑपरेशन सिंदूर और भारत की विदेश नीति को लेकर सकारात्मक टिप्पणियां की थीं. हालांकि इसके बावजूद थरूर ने कई बार स्पष्ट किया है कि उनकी टिप्पणियां राष्ट्रीय हित में हैं, न कि बीजेपी में शामिल होने या व्यक्तिगत लाभ के लिए.
उपराष्ट्रपति पद स्वीकार करने के लिए उन्हें या तो बीजेपी में शामिल होना होगा या एक सर्वसम्मति वाले उम्मीदवार के रूप में सामने आना होगा. वर्तमान राजनीतिक परिदृश्य में कांग्रेस से थरूर के नाम पर समर्थन मिलना असंभव दिख रहा है. पर बीजेपी चाहेगी भी यही कि थरूर के नाम पर विपक्ष का तो समर्थन मिल जाए और कांग्रेस अलग थलग पड़ जाए.
हालांकि बीजेपी कभी भी थरूर जैसे व्यक्तित्व को इतनी महत्वपूर्ण पोस्ट के लिए चुनेगी इसमें संदेह ही है. कोई भी पार्टी लोकसभा अध्यक्ष और राज्यसभा का सभापति ऐसे ही शख्स को बनाती है जिस पर पार्टी को भरोसा हो कि हर आड़े तिरछे वक्त में भी उसका समर्थन मिलेगा. इसलिए थरूर का नाम केवल गॉसिप के लिए ही ठीक है. हकीकत का वास्ता दूर दूर तक नहीं है.