Sehore : मध्यप्रदेश के सीहोर जिले में किसान अब पूरी ताकत से अपनी आवाज़ बुलंद करने जा रहे हैं। 6 अक्टूबर, सोमवार को भैरुंदा (नसरुल्लागंज) में किसान स्वराज संगठन (संयुक्त किसान मोर्चा) के नेतृत्व में एक विशाल ट्रैक्टर रैली आयोजित की जाएगी। यह रैली केवल एक प्रदर्शन नहीं, बल्कि किसानों के दिलों में पलते आक्रोश की गूंज होगी। फसल हमारी, भाव तुम्हारा, नहीं चलेगा–नहीं चलेगा का नारा लेकर हजारों किसान सरकार तक अपनी मांगें पहुंचाएंगे।
किसान स्वराज संगठन और संयुक्त किसान मोर्चा के नेतृत्व में 6 अक्टूबर को भैरूंदा में किसान आक्रोश वाहन रैली निकाली जाएगी। इस रैली में करीब 5000 ट्रैक्टर शामिल होंगे। रैली सुबह 11 बजे कृषि उपज मंडी से शुरू होगी। मुख्य सड़कों से होते हुए यह रैली निकाली जाएगी।
किसान स्वराज संगठन के प्रदेश सचिव गजेंद्र जाट ने कहा कि यदि सरकार ने मांगें नहीं मानीं तो उसे आक्रोश का सामना करना पड़ेगा। किसानों की मांग है कि सोयाबीन की भावांतर योजना बंद की जाए। इसकी खरीदी पहले की तरह न्यूनतम समर्थन मूल्य पर हो। मक्का की खरीदी 2400 रुपए प्रति क्विंटल के हिसाब से शुरू की जाए। फसलों का सर्वे कर मुआवजा और बीमा राशि दी जाए।
किसानों की सबसे बड़ी और मुख्य मांग यह है कि सोयाबीन और मक्का की खरीदी भावांतर योजना के तहत नहीं, बल्कि न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) पर सीधे की जाए। सरकार द्वारा घोषित सोयाबीन का MSP 5328/क्विंटल है। सरकार ने मॉडल रेट पर सोयाबीन का भावांतर देने की घोषणा की है, जबकि मंडियों में यह 3200 से 3500 में बिक रही है। भावांतर योजना केवल MSP और मंडी भाव का अंतर देती है, जिससे किसानों को 500 से 1000 प्रति क्विंटल का सीधा नुकसान उठाना पड़ रहा है। किसान पूछ रहे हैं, जब मेहनत हमारी है, पसीना हमारा है, तो भाव क्यों कटे-कटे मिल रहे हैं?
अतिवृष्टि और मुआवजे की पुकार
क्षेत्र में लगातार हुई अतिवृष्टि से फसलें बर्बाद हो गईं। किसानों की हालत यह है कि न खेत में फसल बची और न ही मंडी में सही दाम मिल रहे हैं। किसान संगठन ने मांग उठाई है कि सरकार तत्काल सर्वे कराए और प्रभावित किसानों को मुआवजा एवं बीमा राशि दिलाए। यह केवल आर्थिक राहत नहीं, बल्कि किसानों की टूटी उम्मीदों को संबल देने का काम करेगा।
खेती घाटे का सौदा क्यों?
किसानों का कहना है कि महंगाई के अनुपात में उनकी फसलों का मूल्य नहीं बढ़ रहा। जब खाद, बीज, डीजल, बिजली और मजदूरी सब कुछ महंगा हो रहा है, तब भी फसलों के दाम जस के तस हैं। किसान अब यह मानने लगे हैं कि खेती मुनाफे का नहीं बल्कि घाटे का सौदा बन चुकी है। ऐसे में अगर एमएसपी पर खरीदी सुनिश्चित न हुई तो किसान अपनी ज़मीन बेचने और खेती छोड़ने को मजबूर होंगे।
रबी सीजन और खाद की किल्लत
किसानों की मांगों में एक और अहम बिंदु है..रबी सीजन के लिए डीएपी और यूरिया खाद की पर्याप्त आपूर्ति। अक्सर सीजन की शुरुआत में खाद की कमी से किसान परेशान होते हैं। लंबे-लंबे इंतजार, कालाबाज़ारी और अतिरिक्त दाम चुकाने जैसी समस्याओं का सामना करना पड़ता है। किसान संगठन ने चेतावनी दी है कि अगर समय पर खाद उपलब्ध नहीं कराई गई, तो अगली फसलों का उत्पादन भी प्रभावित होगा और यह संकट और गहराएगा।
किसान एकजुटता का संदेश
इंदौर–बुधनी रेलवे लाइन परियोजना के तहत भूमि अधिग्रहण में भी किसान उचित मुआवज़े की मांग कर रहे हैं। उनका कहना है कि उन्हें बाज़ार मूल्य का चार गुना मुआवज़ा दिया जाए। किसान स्वराज संगठन ने सभी किसानों से अपील की है कि वे अपने ट्रैक्टर, ट्रॉली और हार्वेस्टर पर संगठन का झंडा और तिरंगा लगाकर इस रैली में शामिल हों। यह रैली केवल हक़ की लड़ाई नहीं, बल्कि खेती और किसान को बचाने का अभियान है। 6 अक्टूबर को जब ट्रैक्टरों का कारवां निकलेगा, तो यह संदेश सरकार तक ज़रूर पहुंचेगा कि अब किसान अपने हक़ की लड़ाई के लिए पूरी ताक़त से सड़क पर उतर चुका है।