हजारों भक्त और अनगिनत चमत्कार…वह संत जिनकी भविष्यवाणी से डरती थी दुनिया, जानें कौन थे बावलिया बाबा?

By Ashish Meena
December 5, 2025

Bawlia Baba : राजस्थान के सीकर स्थित शेखावाटी की धरती हमेशा से ही त्याग, तपस्या और सिद्ध संतों की कर्मभूमि रही है। इसी पावन भूमि पर जन्मे परमहंस गणेशनारायण बावलिया बाबा (Bawaliya Baba) आज भी लाखों श्रद्धालुओं के लिए आस्था का सबसे बड़ा केंद्र बने हुए हैं। प्रेम और श्रद्धा से लोग उन्हें बावलिया बाबा कहकर पुकारते हैं।

उनका तप, कठोर साधना और दिव्य आशीर्वाद उन्हें न केवल राजस्थान बल्कि देश के कई राज्यों में पूजनीय बनाता है। शेखावाटी में उन्हें नगरदेव का दर्जा प्राप्त है।

जन्म और आध्यात्मिक यात्रा का मोड़
बावलिया बाबा का जन्म विक्रम संवत 1903 (पौष बदी प्रतिपदा, गुरुवार) को झुंझुनूं जिले के बुगाला गांव में एक धार्मिक ब्राह्मण परिवार में हुआ था। पिता घनश्यामदास और माता गौरा देवी के दिए गए संस्कारों से उन्होंने अल्पायु में ही वेद, व्याकरण और ज्योतिष में महारत हासिल कर ली थी।

पूजा-पाठ और अनुष्ठान से जीवनयापन करते हुए उनके जीवन में तब एक बड़ा मोड़ आया, जब नवरात्रि में देवी पूजा के दौरान अचानक आए एक व्यवधान ने उन्हें गृहस्थ जीवन के मोह से मुक्त कर दिया। उसी क्षण उन्होंने पूर्ण रूप से ईश्वर भक्ति में लीन होने का संकल्प लिया।

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कठोर तपस्या और अघोर स्वरूप की प्राप्ति
गृहस्थ जीवन त्यागने के बाद बावलिया बाबा गुढ़ागौड़जी की पहाड़ियों में चले गए, जहाँ उन्होंने लगभग 13 माह तक कठोर तपस्या की। इसके बाद वे जसरापुर के श्मशान घाट को अपना निवास बनाकर तप में लीन रहे।

अंततः, उन्होंने चिड़ावा के शिवनगरी नामक स्थान को अपना स्थायी धाम बनाया। यहीं उन्होंने अघोर साधना में प्रवेश किया और पूर्ण अघोरी स्वरूप धारण कर लिया। वे मां दुर्गा के परम उपासक थे और निरंतर दुर्गा बीज मंत्र का जाप करते थे। उनके मुख से निकला हर वचन सत्य सिद्ध होता था। अनिष्ट की घटनाओं के बारे में पूर्व संकेत देने की उनकी अलौकिक शक्ति के कारण ही कुछ लोग उन्हें प्रेमवश “बावलियो पंडित” कहने लगे, जो बाद में उनकी पहचान बन गया। संवत 1969 पौष शुक्ल नवमी गुरुवार को उन्होंने शिवनगरी के शिव मंदिर प्रांगण में समाधि ले ली।

बिड़ला परिवार को मिला अद्भुत आशीर्वाद
बावलिया बाबा के जीवन से कई चमत्कारिक घटनाएं जुड़ी हैं। उद्योगपति सेठ जुगल किशोर बिड़ला (पिलानी) उनकी भक्ति में लीन रहते थे। बिड़ला प्रतिदिन चिड़ावा आकर बाबा के दर्शन किए बिना भोजन नहीं करते थे।

बिड़ला के सेवाभाव से प्रसन्न होकर बाबा ने उन्हें एक विशेष आशीर्वाद दिया: “तुम्हारे घर की करणी-बरणी सदैव चलती रहे।” लोकमान्यता है कि इसी शक्तिशाली आशीर्वाद का फल है कि बिड़ला परिवार ने व्यापार और उद्योग जगत में अपार सफलता और ऊंचाइयों को छुआ। बिड़ला के आग्रह के बावजूद बाबा ने कभी पिलानी जाना स्वीकार नहीं किया। उनकी भक्ति में, बिड़ला ने संवत 1959 में चिड़ावा में एक जोहड़ (तालाब), घाट और विशाल गणेश लाट नामक स्तूप का निर्माण करवाया।

देशभर में फैले बावलिया बाबा के धाम
बावलिया बाबा की बढ़ती श्रद्धा और चमत्कारों ने देशभर में उनके मंदिरों की स्थापना को प्रेरित किया। उनके प्रमुख धाम हैं:
जन्मस्थली: बुगाला
विद्यास्थली: नवलगढ़
तपोस्थली: गुढ़ागौड़जी
समाधिस्थली: चिड़ावा

इनके अलावा, कोलकाता, हैदराबाद, अहमदाबाद, ग्वालियर, सूरत और मुंबई समेत कई शहरों में उनके भव्य मंदिर स्थापित हैं। बुगाला की पैतृक हवेली को बावलिया बाबा मेमोरियल ट्रस्ट मुंबई द्वारा एक म्यूजियम का रूप दिया गया है, जहाँ बाबा की उपयोग की गई वस्तुएँ और स्मृति चिह्नों को संरक्षित रखा गया है।

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आशीष मीणा को पत्रकारिता में 5 साल हो चुके है। इंदौर के श्री अटल बिहारी वाजपेयी शासकीय कला एवं वाणिज्य महाविद्यालय (DAVV) से आशीष मीणा ने पत्रकारिता की डिग्री हासिल की है। इंदौर के अग्निबाण जैसे कई प्रतिष्ठित अखबारों में काम करने के बाद आशीष मीणा ने यहां तक का सफर तय किया है।