MP News : मध्य प्रदेश के पांढुर्णा में 23 अगस्त से एक ऐसे त्योहार को मनाया जाएगा जहां ना जाने कितने पिता भाई बेटे लहुलुहान होंगे और कितनों की जानें जाएंगी. हम बात कर रहे पांढुर्णा में मनाए जाने वाले गोटमार मेले की जो कहने को तो विश्व प्रसिद्ध है लेकिन मेले में बहती अपनों की खून की धाराएं पुराने धाव भी ताजा कर देती है. गोटमार मेले को लेकर पांढुर्णा और आसपास के क्षेत्रों में धारा 144 लागू कर दिया गया है. क्या है इस मेले की कहानी और क्यों खेली जाती है यहां खून की होली?
क्या है गोटमार मेला
गोटमार मेला दरअसल, दुनिया के सबसे प्रसिद्ध और विचित्र मेले में से एक है. इस मेले का संबंध पांढुर्णा में बहने वाली जाम नदी और सावरगांव के संगम से जुड़ी हुई है. यहां मेले में उपस्थित सभी लोग एक दूसरे पर पत्थर बरसाएंगे. कई लोगों की जानें जाएंगी, कई गंभीर रुप से चोटिल होंगे और कई लहूलुहान होंगे बावजूद इसके पूरे जोश और उमंग के साथ पत्थरबाजी का सिलसिला चलता रहेगा. पत्थरबाजी को गोटमार मेला के एक विशेष परंपरा के रुप में देखा जाता है, जो पोला पर्व के दूसरे दिन सजता है.
शहर में धारा 144 लागू
किसी भी शहर में 144 लागू करने का मतलब यही होता है कि इस जिले में या इलाके में कभी भी कोई भी गंभीर स्थिति हिंसक रुप में उतपन्न हो सकती है. यहां भी मौजूदा हाल कुछ ऐसा ही आंका जा रहा है. मेले में खून की धाराएं बहेगी जहां नजरें जाएंगी वहीं कोई न कोई लहूलुहान पड़ा होगा. इस ‘परंपरा’ को शांतिपूर्ण तरीके से मनाए जाने के लिए प्रशासन की ओर से हरसंभव प्रयास चालू है. गौर करने वाली बात ये है कि करीब 600 पुलिसकर्मियों की सेना मेले में उपस्थित रहेगी जहां लोग परंपरा के अनुसार एक दूसरे को मारने मरने के लिए उतारू रहेंगे.
क्यों मनाते है ये विचित्र गोटमार मेला
दुनिया की सबसे अनोखे पर्व को मनाने के पीछे कई तरह के कारण बताएं जाते है. कुछ कहानियां प्रेमी युगल से जुड़ी हुई है तो कुछ राजा महाराज के युद्धाभ्यास काल से. कहते है कि जाम नदी के बीचों बीच पलाश के पेड़ को झंडे के रुप में गाड़ने से इस परंपरा की शुरूआत होती है. यहां मेले में उपस्थित लोग देवी चंडिका के मंदिर में पूजा अर्चना करेंगे जिसके बाद खूनी संघर्ष की लड़ाई की शुरूआत होती है.