बांग्लादेश में भड़की हिंसा, पूर्व प्रधानमंत्री को फांसी की सजा होने के बाद बिगड़े हालात, बांग्लादेश ने कहा- भारत हमें सौंप दें शेख हसीना, मोदी सरकार का आया ये जवाब

By Ashish Meena
November 18, 2025

Dhaka Violence: बांग्लादेश की पूर्व प्रधानमंत्री शेख हसीना को कई मामलों में फांसी की सजा सुनाई गई है. उनको जब सजा नहीं सुनाई गई थी, उससे पहले उनके बेटे सजीब वाजेद का एक बयान सामने आया, जिसमें उन्होंने कहा कि वह पहले से जानते हैं कि उनकी मां को दोषी मानकर मौत की सजा सुनाई जाएगी.

साथ ही उन्होंने अपनी पार्टी पर लगे बैन को लेकर भी चेतावनी दी कि अगर ये नहीं हटाया गया तो उनके समर्थक चुनाव से पहले विरोध-प्रदर्शन करेंगे, जो आगे चलकर हिंसक हो सकता है. हालांकि, हिंसा के लिए चुनाव तक इंतजार करने की जरूरत नहीं पड़ी, बल्कि हसीना को सजा होने के बाद उनके समर्थकों ने ढाका में फिर से हिंसा कर दी है.

शेख हसीना को सजा के बाद फिर बिगड़े हालात
शेख हसीना को मौत की सजा सुनाए जाने के बाद ढाका में हालात खराब हो गए हैं. कई इलाकों में भारी हिंसा, आगजनी और बमबारी की घटनाएं देखने को मिलीं. इस दौरान कई वाहन जलाए गए और सरकारी दफ्तरों पर भी हमले हुए हैं. इस दौरान पुलिस को प्रदर्शनकारियों को नियंत्रित करने के लिए आंसू गैस, लाठीचार्ज और फायरिंग का सहारा लेना पड़ा. इस हिंसा में अब तक दो लोगों की मौत की खबर है. वही, दर्जनों लोग घायल हैं.

सजा के बाद हसीना के बेटे का आया रिएक्शन
सैकड़ों लोग घायल हुए हैं और कई गिरफ्तारियां भी हुई हैं. बता दें प्रदर्शनकारी सड़कें बंद कर रहे हैं, जिनके खिलाफ पुलिस कार्रवाई कर रही है. इसके अलावा, शेख हसीना को फांसी की सजा के फैसले को उनके बेटे ने गलत ठहराया है. उन्होंने इसको लेकर कहा था कि उन्हें पहले ही पता था कि यही फैसला आएगा.

साथ ही उन्होंने अपनी मां के भारत में रहने को लेकर भी कहा कि वह यहां पर सेफ हैं, भारत उन्हें पूरी सुरक्षा दे रहा है. इस मामले में अभी बांग्लादेश ने भारत से शेख हसीना को वापस लौटाने की मांग की है. हालांकि, भारत की तरफ से अभी ये साफ नहीं किया गया है कि वह हसीना को बांग्लादेश भेजेगा कि नहीं.

शेख हसीना का फैसले पर रिएक्शन
हसीना ने कहा कि उन्हें इस फैसले की कोई परवाह नहीं है। उन्होंने फैसले को नाजायज बताया और कहा कि ‘इसे एक नाजायज अतिवादी सरकार ने सुनाया है। बांग्लादेश के लोगों ने इस कंगारू कोर्ट के फैसले को खारिज कर दिया है। अवामी लीग भी इसे खारिज करती है।’ बांग्लादेश की अपदस्थ प्रधानमंत्री ने फैसले को साल 2025 का सबसे बड़ा मजाक बताया और आरोप लगाया कि एक आतंकवादी और चरमपंथी सरकार ने ICT को हथियार बनाया है।

भारत ने क्या कहा?
भारत ने इस मसले पर बहुत सोच-समझकर और शांत रुख अपनाया. विदेश मंत्रालय की तरफ से कहा गया कि भारत ने कोर्ट के फैसले को नोट किया है. भारत हमेशा बांग्लादेश के लोगों के भले को सबसे ऊपर मानता है. भारत ने यह भी कहा कि वह शांति, लोकतंत्र और मिलजुल कर आगे बढ़ने के रास्ते को जरूरी मानता है और बांग्लादेश का साथ देता रहेगा.

इसका मतलब साफ है कि भारत किसी एक पार्टी या शख्स के साथ नहीं, बल्कि पूरे बांग्लादेश की जनता के साथ खड़ा रहना चाहता है. भारत कह रहा है कि वह हर किसी से बातचीत करने और हालात को बेहतर बनाने की दिशा में काम करता रहेगा.

आगे क्या हो सकता है? भारत-बांग्लादेश के रिश्ते
भारत ने साफ कर दिया है कि वह बांग्लादेश की जनता के सुरक्षित और शांतिपूर्ण भविष्य का समर्थन करता रहेगा. दोनों देशों के बीच बॉर्डर, सुरक्षा, नदी के पानी और कारोबार जैसे कई मुद्दों पर साथ काम होता रहेगा, भले ही राजनीतिक हालात जैसे भी हों.

बांग्लादेश की सत्ता बदली
बांग्लादेश में जब शेख हसीना की सरकार गिरी, तो इसका सबसे बड़ा असर भारत के साथ उसके रिश्तों पर पड़ा. हसीना के 15 साल के कार्यकाल में भारत और बांग्लादेश के रिश्ते सबसे बेहतर दौर में थे. दोनों देशों ने आपसी भरोसे, व्यापार और सुरक्षा के क्षेत्र में बड़ी प्रगति की थी. लेकिन 2024 के बीच में जब उनकी भारत समर्थित सरकार गिरी, तो बांग्लादेश की नई अस्थायी सरकार ने इन रिश्तों का तरीका और स्वरूप बदल दिया.

शेख हसीना का दौर – रिश्तों का “स्वर्ण युग”
2009 से 2024 तक शेख हसीना बांग्लादेश की प्रधानमंत्री रहीं. इस दौरान भारत और बांग्लादेश के बीच संबंध बहुत मजबूत हुए. दोनों देशों ने 2015 में जमीन सीमा समझौते पर हस्ताक्षर किए, जिससे पुराने सीमा विवाद हमेशा के लिए खत्म हो गए.

इसके बाद व्यापार बढ़ा, बिजली और ऊर्जा के प्रोजेक्ट बने, नदियों के पानी और सुरक्षा के मामलों में सहयोग बढ़ा. भारत बांग्लादेश का सबसे बड़ा साझेदार बना. आतंकवाद और उग्रवाद के खिलाफ दोनों देशों ने मिलकर काम किया. यही वजह थी कि इस पूरे दौर को भारत-बांग्लादेश संबंधों का “स्वर्ण युग” कहा गया.

सरकार गिरने के बाद शुरू हुआ नया दौर
जुलाई-अगस्त 2024 में जब बांग्लादेश में छात्र आंदोलन और जनता का गुस्सा बढ़ा, तो शेख हसीना की सरकार गिर गई. इसके बाद नोबेल पुरस्कार विजेता मोहम्मद यूनुस के नेतृत्व में एक अस्थायी सरकार बनी. इस नई सरकार में बांग्लादेश नेशनलिस्ट पार्टी (बीएनपी) और इस्लामी समूहों की भूमिका अहम रही.

नई सरकार के आने के बाद भारत और बांग्लादेश के रिश्तों में चुनौतियां खड़ी हो गईं. यूनुस सरकार का नजरिया शेख हसीना जैसा नहीं था. सीमा पर सुरक्षा सहयोग कमज़ोर पड़ा, दोनों देशों की खुफिया एजेंसियों के बीच तालमेल घट गया, और भारत को सीमा से जुड़े मामलों में पहले जैसी प्राथमिकता नहीं दी गई.

भारत के CAA और NRC जैसे कानूनों पर बांग्लादेश की प्रतिक्रिया ने भी माहौल में तनाव बढ़ाया. साथ ही, वहां हिंदू समुदाय पर हुए हमलों और बढ़ती सांप्रदायिक झड़पों ने भारत के लिए चिंता और बढ़ा दी.

रिश्तों में बदलाव और नई चुनौतियां
शेख हसीना के जाने के बाद भारत ने एक भरोसेमंद साथी को खो दिया. अब बांग्लादेश में चीन और पाकिस्तान का असर बढ़ने लगा है, और इस्लामी कट्टरपंथी ताकतें भी फिर से सक्रिय हो गई हैं. ये सब भारत के लिए सुरक्षा और रणनीति दोनों नजरों से परेशानी का कारण हैं.

भारत के लिए बांग्लादेश की स्थिरता बहुत मायने रखती है – चाहे वो व्यापार हो, सीमा सुरक्षा हो या आतंकवाद से मुकाबला. इसीलिए भारत अब भी रिश्तों को संभालने और संवाद बनाए रखने की कोशिश में है. राजनीतिक बदलाव के बीच भारत को अपनी कूटनीति बहुत सोच-समझकर चलानी पड़ रही है, ताकि दोनों देशों के बीच शांति और भरोसा बना रहे.

मौजूदा हालात और आगे की तस्वीर
शेख हसीना फिलहाल भारत में निर्वासन में हैं. उन्होंने अपनी सरकार के पतन को “तानाशाही के खिलाफ साजिश” बताया है और नई सरकार पर कट्टरपंथी ताकतों को बढ़ावा देने का आरोप लगाया है. बांग्लादेश में 2026 में चुनाव होने की उम्मीद है, जो आगे की दिशा तय करेंगे. भारत के लिए अब सबसे बड़ी चुनौती है – अपने आर्थिक, सुरक्षा और सांस्कृतिक हितों को इस नए राजनीतिक माहौल में सुरक्षित रखना.

भारत और बांग्लादेश के बीच 50 साल से भी पुराने रिश्ते हैं. इसलिए राजनीतिक बदलावों के बावजूद, दोनों देशों के बीच जो ऐतिहासिक जुड़ाव है, वो बना रहेगा. अब फोकस इस पर है कि सुरक्षा, व्यापार और शांति के मोर्चे पर साथ मिलकर काम कैसे किया जाए. भारत और बांग्लादेश दोनों ही जानते हैं कि दक्षिण एशिया की स्थिरता और विकास के लिए उनका साथ रहना कितना जरूरी है. यही वजह है कि अब दोनों देशों के रिश्ते नई चुनौतियों और नए अवसरों के साथ फिर से परिभाषित हो रहे हैं.

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