कलवार में भूख हड़ताल पर बैठे किसानों की तबीयत बिगड़ने लगी, सरकार की बेरुखी से आक्रोशित हुए अन्नदाता, पूर्व विधायक कैलाश कुंडल ने कहा- गूंगी-बहरी सरकार किसानों की सुनने को तैयार नहीं

By Ashish Meena
September 24, 2025

Dewas Kalwar : देवास जिले के कलवार में अन्नदाता अपनी मांगों को लेकर भूखे संघर्ष कर रहे है। इंदौर-बुधनी नई रेलवे लाइन परियोजना के लिए उपजाऊ कृषि भूमि के अधिग्रहण का विरोध कर रहे किसानों का आंदोलन लगातार बढ़ता जा रहा है।

कलवार में किसानों की भूख हड़ताल मंगलवार को पांचवें दिन भी जारी रही, जबकि प्रशासन और जिम्मेदार अधिकारियों की तरफ से अब तक कोई भी सुनवाई नहीं हुई है। इस आंदोलन ने किसानों की स्थिति और सरकारी बेरुखी को लेकर गंभीर सवाल खड़े कर दिए हैं। किसान अपनी ही जमीन बचाने के लिए संघर्ष कर रहे है। खेती करके लोगों का पेट भरने वाले किसान आज खुद न्याय के लिए भूखे बैठे है।

बिगड़ रही है अनशनकारियों की सेहत, फिर भी डटे
पिछले पांच दिनों से बिना कुछ खाये बैठे किसानों की सेहत अब बिगड़ने लगी है। आंदोलन में भूख हड़ताल पर बैठे प्रमुख किसान रवि मीणा, मुंशी पठान, रामहेत सीरा, भूरू पठान, लेखराज झाला और संतोष छानवाल का स्वास्थ्य चिंता का विषय बना हुआ है। इसके बावजूद, उनकी हिम्मत और संघर्ष की भावना में कोई कमी नहीं आई है।

इस आंदोलन को खातेगांव, सतवास और बागली सहित आसपास के सैकड़ों किसानों का भारी समर्थन मिल रहा है। बड़ी संख्या में किसान आंदोलन स्थल पर पहुंचकर अपनी एकजुटता दिखा रहे हैं।

कांग्रेस और किसान नेता भी पहुंचे समर्थन में
किसानों की इस पीड़ा को साझा करने और उनका समर्थन करने के लिए कन्नोद-खातेगांव विधानसभा के कांग्रेस के पूर्व विधायक कैलाश कुंडल आंदोलन स्थल पर पहुंचे। उन्होंने किसानों के इस संघर्ष को सरकार की “गूंगी-बहरी” बेरुखी के खिलाफ एक बड़ी लड़ाई बताया। कैलाश कुंडल ने कहा कि पिछले दो सालों से किसान अपनी इस पीड़ा को झेल रहे हैं, लेकिन गूंगी-बहरी सरकार उनकी बात सुनने को तैयार नहीं है।

मीणा समाज के वरिष्ठ नेता कमल पटेल ने भी अनशन स्थल पहुंचकर किसानों का समर्थन किया और अपने पूरे समाज से इस संघर्ष में एकजुट रहने का आह्वान किया। इस आंदोलन में न सिर्फ पुरुष, बल्कि कई महिलाएं भी क्रमिक भूख हड़ताल पर बैठी हैं, जिनमें मनीषा मीणा, लक्ष्मीबाई, गीताबाई, शीबा बी और हसीना बी प्रमुख हैं।

क्यों हो रहा है यह विरोध?
किसानों का कहना है कि सरकार उनकी उपजाऊ जमीन को ले रही है, जिससे उनकी आजीविका पूरी तरह खत्म हो जाएगी। उनका मानना है कि इस परियोजना के लिए जमीन अधिग्रहण की प्रक्रिया निष्पक्ष नहीं है।

यह आंदोलन सिर्फ जमीन अधिग्रहण की प्रक्रिया का मामला नहीं है, बल्कि यह किसानों के अधिकार, सम्मान और उनकी आजीविका से जुड़ा हुआ है। जब तक सरकार किसानों की बात नहीं सुनती और उनकी मांगों पर उचित कार्रवाई नहीं करती, तब तक यह आंदोलन और उग्र हो सकता है। यह देखना होगा कि प्रशासन और सरकार इस गंभीर स्थिति पर कब और कैसे प्रतिक्रिया देते हैं। संकोच की बात यह है की पांच दिन से भूखे बैठे किसानों का हाल जानने के लिए अब तक प्रशासन और जिम्मेदार अधिकारी अनशन स्थल पर नहीं पहुंचे हैं।

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