Manmohan Singh : देश के पूर्व प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह का गुरुवार को निधन हो गया. उनकी उम्र 92 साल थी. दिल्ली यूनिवर्सिटी में इकोनॉमिक्स के प्रोफेसर से लेकर भारतीय रिजर्व बैंक के गवर्नर, देश के वित्त मंत्री और फिर 10 साल तक देश के प्रधानमंत्री रहने का उनका सफर शानदार रहा है. साल 2004 से 2014 के बीच उनकी सरकार ने 5 ऐसे बड़े फैसले किए जिसने देश के लोगों की तकदीर बदली, साथ ही देश की इकोनॉमी को भी ग्रोथ देने का काम किया.
अगर मनमोहन सिंह की सरकार के सबसे बड़े इकोनॉमिक रिफॉर्म के बारे में पूछा जाए, तो वह महात्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी कानून (मनरेगा) कानून का पास कराया जाना था. इस एक कानून ने देश में पलायन की समस्या पर रोक लगाने में अहम भूमिका अदा की. इतना ही नहीं, इस कानून की वजह से गांव, गरीब और अकुशल लोगों के लिए 100 दिन का गारंटीड रोजगार मिलना सुनिश्चित हुआ.इस कानून ने 2008 की मंदी में देश के अंदर ग्रामीण अर्थव्यवस्था को भी बचाए रखने का काम किया.
लेकर आए सूचना का अधिकार
मनमोहन सिंह की सरकार में सूचना का अधिकार (Right To Information) पारित किया गया. इस एक कानून ने इकोनॉमी में ट्रांसपरेंसी लाने का बड़ा काम किया. इससे सरकार की जवाबदेही और उसके पारदर्शिता सुनिश्चित हुई, जो ओवरऑल इकोनॉमी के लिए एक अच्छा कदम साबित हुआ.
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दिया भोजन का अधिकार
मनमोहन सिंह की सरकार में एक और बड़ा काम ‘भोजन के अधिकार’ का हुआ. इसके तहत देश के गरीब लोगों को रियायती दर पर भोजन देने का प्रावधान किया गया. इसका फायदा ये हुआ कि देश की एक बड़ी आबादी भूख की चिंता करके देश की इकोनॉमी में अपना योगदान दे सकी. आज देश में जो प्रधानमंत्री गरीब कल्याण अन्न योजना चल रही है, वह इसी कानून की बदौलत है. इस कानून ने कोविड के दौरान देश के गरीब लोगों की बहुत मदद की.
चांद से मंगल तक का सफर
मनमोहन सिंह के प्रधानमंत्री कार्यकाल में देश की अंतरिक्ष (स्पेस) इकोनॉमी को पावर बूस्ट मिला था. उसी दौर में देश की स्पेस एजेंसी इसरो ने अपने स्पेस क्राफ्ट चंद्रमा और मंगल पर भेजे. इस एक कदम ने भारत को ये ताकत दी कि वह पारग्रही स्पेस मिशन भेजने में भी सक्षम है. मनमोहन सिंह की सरकार के समय में ही भारत के अंतरिक्ष मानव मिशन की रूपरेखा को अमलीजामा पहनाया गया.
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स्किल डेवलपमेंट पर काम
मनमोहन सिंह की सरकार ने देश की इकोनॉमी, युवाओं और भविष्य की जरूरत को समझते हुए स्किल डेवलपमेंट पर काम किया. उन्हीं के कार्यकाल में स्किल डेवलपमेंट मिशन की नींव पड़ी, जो आज के समय में कौशल विकास मंत्रालय का रूप ले चुकी है. इकोनॉमी की ग्रोथ की लिहाज से उनकी सरकार का ये कदम काफी अहम था, क्योंकि ये देश की बढ़ती इकोनॉमी के लिए स्किल्ड वर्क फोर्स को तैयार करने का कदम था.
देश विभाजन के बाद भारत आया था परिवार
भारत के विभाजन के बाद, उनका परिवार हल्द्वानी, भारत में चला गया. 1948 में वे अमृतसर चले गए, जहां उन्होंने हिंदू कॉलेज, अमृतसर में अध्ययन किया. उन्होंने पंजाब विश्वविद्यालय, फिर होशियारपुर में अर्थशास्त्र का अध्ययन किया और 1952 और 1954 में क्रमशः स्नातक और मास्टर डिग्री प्राप्त की, अपने शैक्षणिक जीवन में प्रथम स्थान पर रहे. उन्होंने 1957 में कैम्ब्रिज विश्वविद्यालय में अपना अर्थशास्त्र ट्रिपोस पूरा किया. वे सेंट जॉन्स कॉलेज के सदस्य थे.
डी फिल. पूरा करने के बाद सिंह भारत लौट आए. वे 1957 से 1959 तक पंजाब विश्वविद्यालय में अर्थशास्त्र के वरिष्ठ व्याख्याता रहे. साल 1959 और 1963 के दौरान, उन्होंने पंजाब विश्वविद्यालय में अर्थशास्त्र में रीडर के रूप में काम किया और 1963 से 1965 तक वे वहाँ अर्थशास्त्र के प्रोफेसर रहे.
1966 से 1969 तक UNCTAD में किया था काम
वे 1966 से 1969 तक व्यापार और विकास पर संयुक्त राष्ट्र सम्मेलन (UNCTAD) के लिए काम करने चले गए. बाद में, अर्थशास्त्री के रूप में सिंह की प्रतिभा को मान्यता देते हुए ललित नारायण मिश्रा ने उन्हें विदेश व्यापार मंत्रालय का सलाहकार नियुक्त किया. 1969 से 1971 तक, सिंह दिल्ली विश्वविद्यालय के दिल्ली स्कूल ऑफ इकोनॉमिक्स में अंतर्राष्ट्रीय व्यापार के प्रोफेसर रहे.
ऑक्सफोर्ड से अर्थशास्त्र में डॉक्टरेट की उपाधि प्राप्त करने के बाद डॉ मनमोहन सिंह ने 1966-1969 के दौरान संयुक्त राष्ट्र के लिए काम किया, इसके बाद उन्होंने अपना नौकरशाही करियर तब शुरू किया जब ललित नारायण मिश्रा ने उन्हें वाणिज्य और उद्योग मंत्रालय में सलाहकार के रूप में नियुक्त किया.
देश के कई महत्वपूर्ण पदों पर किया था काम
1970 और 1980 के दशक के दौरान मनमोहन सिंह ने भारत सरकार में कई प्रमुख पदों पर कार्य किया, जैसे कि मुख्य आर्थिक सलाहकार (1972-1976), रिजर्व बैंक के गवर्नर (1982-1985) और योजना आयोग के प्रमुख (1985-1987).
1972 में, सिंह वित्त मंत्रालय में मुख्य आर्थिक सलाहकार बने और 1976 में वे वित्त मंत्रालय में सचिव. 1980-1982 में वे योजना आयोग में थे, और 1982 में, उन्हें तत्कालीन वित्त मंत्री प्रणब मुखर्जी के अधीन भारतीय रिजर्व बैंक का गवर्नर नियुक्त किया गया और 1985 तक इस पद पर रहे.
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वे 1985 से 1987 तक योजना आयोग (भारत) के उपाध्यक्ष बने. योजना आयोग में अपने कार्यकाल के बाद, वे 1987 से नवंबर 1990 तक जिनेवा, स्विट्जरलैंड में मुख्यालय वाले एक स्वतंत्र आर्थिक नीति थिंक टैंक, साउथ कमीशन के महासचिव थे.
मनमोहन सिंह सिंह नवंबर 1990 में जिनेवा से भारत लौट आए और चंद्रशेखर के कार्यकाल के दौरान आर्थिक मामलों पर भारत के प्रधान मंत्री के सलाहकार के रूप में पद संभाला. मार्च 1991 में, वे विश्वविद्यालय अनुदान आयोग के अध्यक्ष बने.
पीवी नरसिम्हा राव की सरकार में बने थे वित्त मंत्री
साल 1991 में, जब भारत एक गंभीर आर्थिक संकट का सामना कर रहा था, नव निर्वाचित प्रधान मंत्री पीवी नरसिम्हा राव ने गैर-राजनीतिक सिंह को वित्त मंत्री के रूप में अपने मंत्रिमंडल में शामिल किया, हालांकि ये उपाय संकट को टालने में सफल साबित हुए और वैश्विक स्तर पर सुधारवादी अर्थशास्त्री के रूप में मनमोहन सिंह की प्रतिष्ठा को बढ़ाया, लेकिन 1996 के आम चुनाव में कांग्रेस पार्टी का प्रदर्शन खराब रहा. जून 1991 में, तत्कालीन भारत के प्रधानमंत्री पी. वी. नरसिंह राव ने सिंह को अपना वित्त मंत्री चुना.
साल 2004 में बने देश के प्रधानमंत्री
इसके बाद, 1998-2004 की अटल बिहारी वाजपेयी सरकार के दौरान सिंह राज्यसभा (भारत की संसद के ऊपरी सदन) में विपक्ष के नेता थे. 2004 में जब कांग्रेस के नेतृत्व वाली संयुक्त प्रगतिशील गठबंधन सत्ता में आई, तो इसकी अध्यक्ष सोनिया गांधी ने अप्रत्याशित रूप से प्रधानमंत्री पद सिंह को सौंप दिया.
उनके पहले मंत्रालय ने राष्ट्रीय ग्रामीण स्वास्थ्य मिशन, विशिष्ट पहचान प्राधिकरण, ग्रामीण रोजगार गारंटी योजना और सूचना का अधिकार अधिनियम सहित कई प्रमुख कानून और परियोजनाएं क्रियान्वित कीं.
2008 में, संयुक्त राज्य अमेरिका के साथ एक ऐतिहासिक असैन्य परमाणु समझौते के विरोध के कारण वाम मोर्चा दलों द्वारा अपना समर्थन वापस लेने के बाद मनमोहन सिंह की सरकार लगभग गिर गई थी. उनके कार्यकाल के दौरान भारत की अर्थव्यवस्था तेजी से बढ़ी.
मनमोहन सिंह की हैं तीन बेटियां
2009 के आम चुनाव में यूपीए ने बढ़े हुए जनादेश के साथ वापसी की. मनमोहन सिंह ने प्रधानमंत्री का पद बरकरार रखा. अगले कुछ वर्षों में, सिंह की दूसरी सरकार को 2010 के राष्ट्रमंडल खेलों के आयोजन, 2 जी स्पेक्ट्रम आवंटन मामले और कोयला ब्लॉकों के आवंटन पर भ्रष्टाचार के कई आरोपों का सामना करना पड़ा.
अपना कार्यकाल समाप्त होने के बाद, उन्होंने 2014 के भारतीय आम चुनाव के दौरान प्रधानमंत्री पद की दौड़ से बाहर होने का विकल्प चुना. मनमोहन सिंह कभी भी लोकसभा के सदस्य नहीं रहे, लेकिन उन्होंने 1991 से 2019 तक असम राज्य और 2019 से 2024 तक राजस्थान का प्रतिनिधित्व करते हुए राज्यसभा के सदस्य के रूप में कार्य किया. मनमोहन सिंह ने 1958 में गुरशरण कौर से शादी की. उनकी तीन बेटियां हैं, उपिंदर सिंह, दमन सिंह और अमृत सिंह.