Bajrang Punia : हरियाणा में विधानसभा चुनाव के बीच कांग्रेस का किसान सेल सुर्खियों में है. वजह है पहलवान बजरंग पूनिया की एंट्री. राजनीति में आने के 6 घंटे बाद ही पहलवान पूनिया को कांग्रेस ने किसान सेल का को-चेयरमैन या कार्यकारी अध्यक्ष नियुक्त कर दिया. 114 साल पुरानी कांग्रेस किसान सेल में कार्यकारी अध्यक्ष दूसरे सबसे बड़ा पद है.
इस पद पर पूनिया की नियुक्ति क्यों की गई है और यह संगठन कांग्रेस के भीतर कितना मजबूत है, आइए इसे विस्तार से जानते हैं. राजनीतिक दल अपने भीतर कई फ्रंटल संगठन बनाकर रखता है. संगठन का मुख्य काम अपने क्षेत्र से जुड़े लोगों के मुद्दे को उठाना और उन्हें पार्टी की विचारधारा से जोड़ना है. संगठन बनाने की सबसे बड़ी वजह यह है कि मुख्य संगठन के लोग अधिकांशत:
चुनाव में बिजी रहते हैं, जिसके कारण संगठन से जुड़े कई फीडबैक उन्हें नहीं मिल पाते है. फ्रंटल संगठन इस कमी को भी दूर करने का काम करता है. कांग्रेस में किसान सेल भी इसी तरह का एक फ्रंटल संगठन है. यह किसानों से जुड़े मुद्दों को उठाने के साथ-साथ पार्टी को इसको लेकर सुझाव प्रदान करता है.
आजादी से पहले ही साल 1910 में कांग्रेस के भीतर किसान सेल की स्थापना की गई थी. सईद अब्दुल अजीज ने इसकी स्थापना में बड़ी भूमिका निभाई थी. यह संगठन किसानों को कांग्रेस की विचारधारा से जोड़ने का काम करती थी. 1936 तक संगठन किसानों के बीच खूब लोकप्रिय भी था, लेकिन सहजानंद सरस्वती ने जैसे ही अखिल भारतीय किसान सभा का गठन किया.
वैसे ही इस संगठन का रंग फीका पड़ने लगा. आजादी के बाद भी किसान सेल अन्य फ्रंटल संगठनों की तरह काम करता रहा. किसान कांग्रेस के प्रवक्ता आजाद मलिक के मुताबिक उस वक्त कांग्रेस के भीतर इंटक बाद किसान सेल सबसे मजबूत फ्रंटल संगठन था. हालांकि, सत्ता में रहने की वजह से इसके विस्तार पर असर पड़ा.
वर्तमान में हर राज्य और जिले में इस सेल का अपना संगठन और कार्यकारिणी है. पंजाब विधानसभा के पूर्व नेता प्रतिपक्ष सुखपाल सिंह खैरा इसके चेयरमैन हैं. किसान सेल से करियर की शुरुआत करने वाले कई नेता कांग्रेस और सरकार के स्तर पर बड़े पदों पर पहुंचे. इनमें सरदार हुकुम सिंह, बलराम जाखड़, राजेश पायलट और नान पटोले का नाम प्रमुख है.
आजादी के बाद हुकुम सिंह को किसान कांग्रेस की कमान मिली थी और उस वक्त उन्होंने राजस्थान और संयुक्त पंजाब के इलाकों में इसके विस्तार में बड़ी भूमिका निभाई. हुकुम सिंह इसके बाद कांग्रेस में बड़े पदों पर पहुंचे. 1962 में सरदार हुकुम सिंह लोकसभा के स्पीकर बनाए गए. 1967 में वे राजस्थान के राज्यपाल भी बने. इसी तरह की पदोन्नति किसान कांग्रेस में अध्यक्ष रहे बलराम जाखड़ की हुई.
कांग्रेस के किसान सेल से राजनीतिक करियर की शुरुआत करने वाले जाखड़ लोकसभा के स्पीकर, राज्यपाल और केंद्रीय मंत्री तक बने. पूर्व केंद्रीय मंत्री राजेश पायलट भी शुरुआत में किसान कांग्रेस से ही जुड़े. वे इस सेल के अध्यक्ष भी रहे. किसान कांग्रेस से निकलने के बाद पायलट बड़े नेता बने. वर्तमान में उनके बेटे सचिन पायलट भी उत्तर भारत में काफी लोकप्रिय हैं. पूर्व विधानसभा स्पीकर और महाराष्ट्र कांग्रेस के अध्यक्ष नाना पटोले भी एक वक्त में किसान सेल के अध्यक्ष रहे हैं.
बजरंग पूनिया को तुरंत बड़ा पद देना था. मुख्य संगठन में अगर कोई बड़ा पद देते तो गलत संदेश जा सकता था. पार्टी के भीतर ही सवाल उठता, इसलिए उन्हें पहले कांग्रेस के किसान संगठन में भेजा गया है. कांग्रेस पहले भी इस तरह का प्रयोग कर चुकी है. 2018 में नाना पटोले जब कांग्रेस में आए थे, तो पहले उन्हें इसी सेल में भेजा गया था. बाद में उन्हें महाराष्ट्र इकाई का प्रमुख बनाया गया.
किसान कांग्रेस के प्रवक्ता आजाद मलिक के मुताबिक बजरंग पूनिया जाना-पहचाना चेहरा हैं. उनके आने से पार्टी को पहला फायदा तो यह मिलेगा कि किसान उनकी बातों को सुनेंगे. हमने किसानों के लिए 5 गारंटी की घोषणा की हुई है. पूनिया इसे लेकर किसानों के बीच जाएंगे तो कांग्रेस के पक्ष में माहौल बनेगा.
कांग्रेस सूत्रों के मुताबिक अभी कांग्रेस सेल के जो चेयरमैन (सुखपाल खैरा) हैं, वो देश की राजनीति से ज्यादा पंजाब की राजनीति पर फोकस कर रहे हैं. इन वजहों से अन्य हिस्सों में कांग्रेस किसानों की आवाज को मजबूती से नहीं उठा पा रही थी. बजरंग को इस सेल में लाकर पार्टी इस क्राइसिस को दूर करना चाहती है.
बजरंग हरियाणा से आते हैं और यहां की राजनीति किसानों के इर्द-गिर्द ही घूमती है. बजरंग पहले भी किसान आंदोलन में शरीक होते रहे हैं. हाल ही में विनेश फोगाट भी किसानों के मंच पर दिखी थी. ऐसे में उन्हें इस सेल की जिम्मेदारी सौंपकर कांग्रेस ने हरियाणा के किसानों को साधने का प्रयास किया है. कांग्रेस में कितना मजबूत है किसान सेल, बजरंग पूनिया को को-चेयरमैन बनाने के पीछे क्या है स्ट्रैटजी?