Dewas News : एक व्यक्ति जो, बिजनेसमैन के साथ किसान भी हैं। वो अल्ट्रा हाई डेंसिटी प्लांटेशन टेक्नीक (UHDP) से केसर आम का उत्पादन कर रहे हैं। दावा है कि ऑर्गेनिक तरीके से उगाए गए इस आम की मिठास गुजरात के केसर आम से भी अच्छी है। खास बात है कि करीब 8 फीट तक के पेड़ों से जमीन पर आसानी से खड़े होकर आम तोड़ सकते हैं। पहली बार में चार एकड़ में करीब चार लाख रुपए से ज्यादा का प्रॉफिट हुआ है।
इंदौर के बिजनेसमैन रणबीर मल्होत्रा ग्लास हार्डवेयर के बिजनेस से जुड़े हैं। उनके प्रोडक्ट साउथ अफ्रीका और कतर जैसे देशों में एक्सपोर्ट होते हैं। इंदौर से 65 किलोमीटर दूर देवास जिले में बागली के गड़बड़ी गांव में रणबीर की चार एकड़ जमीन है। इस जमीन पर उन्होंने कुछ साल पहले आम का बाग तैयार किया है। इसमें यूएचडीपी (अल्ट्रा हाई डेंसिटी प्लांटेशन) तकनीक के माध्यम से केसर आम को व्यवसायिक स्तर पर उगाने की शुरुआत की गई है। आम की केसर प्रजाति के एक हजार पेड़ों के साथ ही मलिका आम के 250 और हापुस के भी कुछ पेड़ हैं।
आम की वैरायटी सिलेक्शन का किस्सा भी रोचक
रणबीर बताते हैं कि करीब 5 साल पहले जमीन खरीदी थी। इसके बाद कई कृषि विशेषज्ञों से चर्चा की। निष्कर्ष निकाला कि पारंपरिक की तुलना में फलों की खेती ज्यादा लाभदायक है। कौन सा फल उगाया जाए, इसके लिए मंथन शुरू किया। थाई अमरूद समेत अन्य फलों के लिए विचार बनाया। काफी सोच-विचार के बाद आम की खेती का फैसला लिया। ज्यादा भाव वाला फल ज्यादा मुनाफा देगा, यह सोचते हुए केसर आम के पेड़ लगाना तय किया। कारण- इसका भाव 70 से 200 रुपए प्रति किलो तक होता है। इंदौर समेत आसपास के शहरों में केसर की डिमांड भी अच्छी है।
वैरायटी चुनने के लिए घूमे 5 राज्य
रणबीर बताते हैं कि आम की अच्छी किस्म के चयन के लिए आंध्रप्रदेश, महाराष्ट्र, गुजरात, यूपी और मध्यप्रदेश में करीब 10 हजार किमी यात्रा की। मदर प्लांट की पहचान करना जरूरी था। इसके अलावा इंटरनेट पर गूगल, यूट्यूब पर भी जानकारी ली। कई जगह तो मौके पर नर्सरी ही नहीं थी, सिर्फ दलाल मिले।
आखिरकार काफी खोजबीन के बाद जलगांव से 15 से 18 इंच हाइट के केसर आम के पौधे खरीदे। एक पौधे की कीमत 300 रुपए थी। पौधों के साथ ही ड्रिप सिस्टम भी खरीदा। पौधे खरीदने से लेकर फ्रूटिंग तक में नर्सरी प्रबंधन की मदद मिलती रही।
फलों पर लगाए यूवी प्रोटेक्टेड बैग
रणबीर बताते हैं कि विशेषज्ञों से चर्चा के बाद यूएचडीपी तकनीक से आम उगाना तय किया गया। दरअसल, परंपरागत आम के पेड़ों की दूरी अमूमन 20 फीट होती है, लेकिन यूएचडीपी तकनीक में पौधे की दूरी 2 मीटर और पंक्ति से पंक्ति की दूरी 4 मीटर रखी गई है। सभी पेड़ों के नीचे मेट बिछाई गई है, जिससे बिडिंग नहीं करनी पड़ती। सभी फलों पर यूवी प्रोटेक्टेड बैग लगाए गए हैं, जिससे फलों का रंग एक सा रहता है और क्वालिटी भी अच्छी आती है। इसका एक फायदा यह भी है कि आंधी, तेज हवा या बारिश में फलों को नुकसान नहीं होता। इस साल मई में 3-4 बार आंधी चली, लेकिन बमुश्किल बाग में महज 10 से 15 फल ही गिरे।
पेड़ों की हाइट बढ़ाने के बजाय शाखा बढ़ाने पर ध्यान
रणबीर बताते हैं कि हमारा ध्यान पेड़ों की हाइट बढ़ाने के बजाय शाखा (ब्रांच) बढ़ाने पर है। किसी भी हालत में पेड़ों की हाइट 8 फीट से ज्यादा नहीं होने देंगे। कारण- फलों पर बैगिंग और हार्वेस्टिंग आसानी हो जाती है। यहां तक कि जमीन पर लेटकर और खड़े होकर भी फल को तोड़ सकते हैं। लेबर भी बहुत कम लगती है। नोएडा की कंपनी से 2.50 रुपए प्रति नग से 18 हजार बैग खरीदे हैं। ये बैग यूवी प्रोटेक्टेड और रियूजेबल हैं। एक बैग को 2 से 3 बार तक इस्तेमाल किया जा सकता है।
450 पेड़ों से 5 हजार किलो आम निकलने की उम्मीद
मल्होत्रा कहते हैं कि हर सीजन में गुजरात के केसर आम का होलसेल मार्केट में भाव न्यूनतम 75 से 80 रुपए किलो तक होता है। वहीं, शुरुआती समय में ये भाव 100 से 130 रुपए किलो तक रहता है, जबकि रिटेल भाव 200 रुपए प्रति किलो तक होता है। इस बार करीब 450 पेड़ों में फ्रूटिंग ले रहे हैं। एक पेड़ में 50 से 60 आम लगे हैं। एक आम का वजन 250 ग्राम से 350 ग्राम है। इस तरह एक पेड़ पर 10 से 12 किलो की पैदावार निकलेगी। 450 पेड़ों से लगभग 5 हजार किलो आम निकलने की उम्मीद है। इसकी कीमत करीब 4 लाख के आसपास रहेगी।
आम के बागान में डेढ़ लाख रुपए खर्च
रणबीर बताते हैं कि इस साल निंदाई, खाद, मेट, लेबर समेत अन्य खर्च मिलाकर करीब डेढ़ लाख रुपए का आएगा। करीब ढाई लाख रुपए शुद्ध मुनाफा होने की उम्मीद है। इस खेती के लिए शुरुआती 5 साल तो इन्वेस्टमेंट के रूप में हैं। अगर पौधों की अच्छी देखरेख रही, तो 7 साल की उम्र का एक पौधा एक सीजन में 50 किलो से ज्यादा आम दे सकता है। साल दर साल यह मुनाफा बढ़ता जाएगा।
दावा- स्वाद में गुजराती केसर से कम नहीं
रणबीर मल्होत्रा बताते हैं कि गुजरात और इंदौर के आम शौकीन मित्रों को अपने बाग के आम खिलाए। उनसे मिले रिव्यू के बाद में कह सकता हूं कि हमारे बाग के केसर आम का स्वाद गुजराती केसर आम से कम नहीं है। इसमें रासायनिक खाद/कीटनाशक का इस्तेमाल नहीं किया गया। हम सिर्फ गोबर खाद का इस्तेमाल कर रहे हैं। हर साल पौधों की पंक्तियों के बीच की खाली जगह में रोटावेटर चलवाते हैं, जिससे मिट्टी की सॉफ्टनेस बनी रहती है। खेत पर 12 से 15 लोगों को रोजगार भी दिया है।
थाई जामुन, एवोकाडो समेत अन्य फलों के पेड़
रणबीर का कहना है कि बाग में केसर आम के एक हजार पेड़ों के साथ ही मलिका आम के 250 और हापुस आम के भी कुछ पेड़ हैं। एक्सपेरिमेंट के तौर पर थाई जामुन, एवोकाडो, चेरी, आलू बुखारा, चीकू, सेवफल, स्टार फ्रूट और अनार सहित कुछ अन्य पेड़ भी लगाए हैं, जिनमें भी अब फल आना शुरू हो गए हैं।
रणबीर कहते हैं कि पहले साल लहसुन और फिर हल्दी की फसल इंटरक्रॉपिंग के जरिए ली। आम के पौधों को लगाए दो साल होने के बाद इसे बंद कर दिया। आम की अच्छी पैदावार लेने के लिए अक्टूबर से फरवरी तक पौधों को पानी की जरूरत नहीं होती। इंटरक्रॉपिंग के दौरान फसलों को दिया पानी आम की जड़ों तक पहुंच जाता है। जो फलों की संख्या और क्वालिटी को प्रभावित करता है।
कस्टमर्स 5 किलो पैकिंग में ऑनलाइन भी खरीद सकेंगे
रणबीर अपने बाग के फल को सीधे कस्टमर तक पहुंचाना चाहते हैं। इसके लिए ‘गो-मेंगोस’ ब्रांड नेम के साथ मार्केटिंग शुरू की है। उन्होंने बताया कि 5 किलो पैकिंग में यह ग्राहकों को उपलब्ध होगा। ग्राहक इसे ऑनलाइन या बगीचे से खरीद सकेंगे। तय किया है कि प्राकृतिक रूप से पेड़ पर पके या ग्राहक की डिमांड पर कच्चे आम ही बेचे जाएंगे। आम को पकाने के लिए कॉर्बेट या अन्य केमिकल का इस्तेमाल नहीं किया जाएगा।
एग्रो-टूरिज्म की कर रहे प्लानिंग
रणबीर मल्होत्रा बाग को एग्रो-टूरिज्म के रूप में डेवलप करने की भी प्लानिंग कर रहे हैं। मकसद छात्रों, युवा उद्यमियों और इच्छुक किसानों को ‘आधुनिक फल खेती’ की प्रक्रिया के बारे में बताना है। इसके जरिए यहां विजिट करने वाले UHDP तकनीक, जैविक खेती और बागवानी के व्यवसायिक पहलुओं को प्रत्यक्ष रूप से समझ सकेंगे।
कई किसान इस तकनीक को देखने और समझने में रुचि दिखा रहे हैं। हाल ही में बड़वानी, धार, ग्वालियर सहित अन्य जिलों के किसानों ने यहां का दौरा किया है।