Premanand Maharaj : कहा जाता है कि लालच में पड़ा इंसान अपना जीवन तबाह कर देता है. एक लालची व्यक्ति अपने जीवन में कभी भी सुखी नहीं रह पाता है. वो हमेशा भोग-विलास और माया के जाल में फंसा रह जाता है. लालच का भाव इंसान के व्यक्तित्व पर नकारात्मक प्रभाव डालता है और ऐसे लोगों का जीवन भी गर्दिश की और जाने लग जाता है.
वृंदावन के प्रख्यात संत प्रेमानंद महाराज किसी परिचय के मोहताज नहीं हैं. सोशल मीडिया से लेकर बड़े-बड़े ऐक्टर, नेता, खिलाड़ी तक उनसे सत्संग की धूम है. उनसे मिलने के लिए बड़ी हस्तियों की भी लाइन लगी रहती है. देश के महान आध्यात्मिक गुरु प्रेमानंद जी महाराज ने बताया है कि आखिर इंसान लालच क्यों करता है और लालच से कैसे बचा जा सकता है.
धन के लोभ की फांसी अपने गले में ना डालने वाला या तो भगवान है या फिर वो भगवान को प्राप्त करने वाले महापुरुष हैं. प्रेमानंद महाराज की मानें तो जीवन में तीन चीजें ऐसी हैं जो इंसान को भगवान की प्राप्ति नहीं करने देती हैं. ये 3 चीजें हैं कंचन, कामिनी और कीर्ति. इसमें से कंचन का तात्पर्य धन से ही है. प्रेमानंद महाराज ने कंचन, कामिनी और कीर्ति को मनुष्य के जीवन की तीन ऐसी खाई बताया है जो उसके भगवत प्राप्ति के मार्ग में बाधा हैं. धन का उपयोग मनुष्य इंद्रियों पर खर्च करने के लिए करता है. प्रेमानंद जी कहते हैं कि इसका कोई अंत नहीं है.
प्रेमानंद जी ने राजा ययाति और देवयानी की कहानी सुनाई. उन्होंने कहा सुक्राचार्य जी की पुत्री देवयानी जी बहुत ही सुंदर थीं. ययाति और उनका विवाह हुआ. विलास सुख भोगा. लेकिन जब बुजुर्ग हो गए तो अपने पुत्र का यौवन लेकर फिर से विलास भोग किया. लेकिन अंत तक भी कुछ नहीं मिला. फिर उन्होंने ये बात कही कि जो व्यक्ति भगवान से विमुख इंसान को चाहें दुनियाभर का भोग-विलास का सामान भी दे दिया जाए तो भी ऐसे लोगों को कभी भी मुक्ति नहीं मिलती है. बड़े-बड़े महात्माओं ने देखा. भोगों से कभी शांति नहीं मिली बल्कि सिर्फ उन्हें ही तृप्ति मिली जिन्होंने अपने जीवन में भोगों का त्याग किया.
ऐसे में प्रेमानंद महाराज का कहना है कि अगर इंसान भोग-विलास में रुचि ना रखते हुए अपने उत्तम ध्यान के भाव को भगवान में लगाए, सही जगह पर लगाए, तो उसे इस लोक में भी तृप्ति मिल जाएगी और उस लोक में भी तृप्ति मिलेगी. जहां भगवान से ध्यान हटा तो फिर ये धोखेबाज माया इंसान को ऐसे ही जीवनभर फंसाकर रखती है और पूरा जीवन ही नष्ट कर के रख देती है.
जीवन में टूटना नहीं
प्रेमानंद महाराज कहते हैं कि जीवन में कैसी भी परिस्थिति हो हारना नहीं चाहिए। व्यक्ति खुद में बहुत शक्तिशाली है उसे विपरीत परिस्थितियों में डरना नहीं है। वो अपने जीवन का एक किस्सा बताते हैं जिसमें उन्हें एक शराबी ने ये उपदेश दिया था कि टूटना नहीं है कभी। उस व्यक्ति ने संत से कहा कि ‘मंदिर की मूर्ति तिल तिल करके काटी गयी है लेकिन टूटी नहीं तो पूजी जा रही है और संगमर्मर टुकड़े टुकड़े हो गई और पैरों के नीचे बिछी हुई है। इसलिए टूटना नहीं कभी’ , ये सुनते ही प्रेमानंद जी ने उस व्यक्ति को प्रणाम किया।
दुःख से न ऊबें
संत प्रेमानंद की ये सीख हमारे जीवन में बहुत महत्वपूर्ण है। इस संसार में हर प्राणी ही दुःख से घबराता है और ऐसा सोच कर हम ईश्वर से प्रार्थना करते हैं कि हमारा दुःख मिटा दिया जाए। ऐसे लोगों के लिए संत प्रेमानंद कहते हैं कि दुःख से ऊबना और घबराना नहीं चाहिए। ईश्वर से ये प्रार्थना न करें कि हमारा दुःख मिटा दो बल्कि भगवान से ये कहो कि जिसमें हमारा मंगल हो वो विधान करो यदि हमें दुःख दो तो हमें दुःख को सहने का सामर्थ्य दो। उनका ये विचार मन को सामर्थ्य से भर देता है। हम अपने दुखों से घबराते रहते हैं लेकिन इतनी सरल बात को समझ नहीं पाते हैं, ऐसे में प्रेमानंद महराज की ये सीख हमें अपने जीवन में ढालनी चाहिए।
क्षमा करने वाला ‘बलवान’ है
संत प्रेमानंद अपने सुनने वालों को बलवान की एक ऐसी परिभाषा बताते हैं जो आपको साहस से भर देती है। प्रेमानंद जी के अनुसार बलवान वही है जो क्षमा करना जानता है, वो जो काम और लोभ को जीत ले, बलवान वो है। कोई बीमार पड़ा है और आप उसकी सेवा कर रहे हैं, कोई चाह नहीं है तो आप बलवान हैं। निर्बल वो हैं जो अपने सुख के लिए जीते हैं। बलवान कौन है इसे खूबसूरत तरीके से प्रेमानंद जी समझाते हैं।
सोच अच्छी होनी है ज़रूरी
हमारी सोच पर ही हमारे जीवन जीने का तरीका निर्भर करता है। हमारी सोच कैसी होनी चाहिए इसे बहुत सरल तरीके से संत प्रेमानंद जी ने समझाया है कि आपकी सोच अच्छी है तो आप थोड़ा कम पैसे वाले भी हैं ना गरीब भी हैं, मस्त रहें। सोच सही नहीं है तो चाहे आपके अरबों रुपया हो आपका जीवन नरक जैसा रहेगा क्योंकि आपकी सोच अशांति ,कलह , नाना प्रकार की वासनाओं में खेल में फंसाकर नष्ट कर देगी।
प्रेमानंद गोविंद शरण जी ने काफी छोटी उम्र में सन्यास ग्रहण कर लिया था। वहीं अगर इनके जन्म की बात करें तो इनका जन्म कानपुर जिले के सरसौल ब्लॉक के अखरी गांव में हुआ। इनके पिता का नाम शंभू पांडेय है, माता का नाम राम देवी हैं। वहीं महाराज जी के गुरु जी का नाम श्री गौरंगी शरण जी महाराज है। वहीं प्रेमानंद जी महाराज बताते हैं कि, जब वे 5वीं कक्षा में थे, तभी से गीता का पाठ शुरू कर दिया और इस तरह से धीरे-धीरे उनकी रुचि आध्यात्म की ओर बढ़ने लगी।
अगर आप भी प्रेमानंद जी महाराज के दर्शन करना चाहते हैं, तो रात करीब 2:30 बजे उनके आश्रम वृंदावन के श्री राधाकेली कुंज के पास पहुंचना पड़ेगा। प्रेमानंद महाराज का आश्रम इस्कॉन मंदिर के पास परिक्रमा रोड पर भक्ति वेदनता हॉस्पिटल के ठीक सामने है। प्रेमानंद महाराज रोजाना अपने आवास से राधाकेली आश्रम तक पैदल ही चलकर आते हैं। हर रोज हजारों की संख्या में श्रद्धालु महाराज उनके दर्शन के लिए आते हैं।
प्रेमानंद महाराज का सत्संग सुनने के साथ ही उनके दर्शन के लिए आपको दो दिन का समय लग जाएगा। आश्रम में हर दिन सुबह 9:30 बजे महाराज के शिष्यों की तरफ से अलग-अलग टोकन प्रदान किए जाते हैं। आप इसी टोकन की मदद से अगले दिन महाराज के दर्शन कर सकते हैं। प्रेमानंद महाराज से मिलने के लिए आपके पास आधार कार्ड का होना भी अनिवार्य है। बिना आधार के आपको टोकन मिलने में समस्या भी हो सकती है।
अकेले में बातचीत के लिए टोकन मिलने के बाद आपको अगले दिन सुबह 6:30 बजे आश्रम आ जाना होगा। इसके बाद आप करीब एक घंटे तक आश्रम में महाराज से बात और सवाल कर सकते हैं। इसके बाद उसी दिन आपको 7:30 बजे का टोकन भी मिल सकता है, जिससे आप महाराज को दर्शन कर सकते हैं।