Sindhu Water : पहलगाम हमले के बाद भारत ने जो कदम उठाए हैं, उनमें सबसे बड़ा फैसला है- सिंधु जल समझौते पर रोक लगाना। पाकिस्तान की खेती, पीने का पानी और बिजली उत्पादन का बड़ा हिस्सा इसी पानी पर निर्भर है। दोनों देशों के बीच 3 जंग के बावजूद भारत ने ये समझौता बरकरार रखा था।
पीएम मोदी की अध्यक्षता वाली कैबिनेट कमेटी ऑन सिक्योरिटी ने सिंधु जल समझौता रोकने समेत 5 पॉइंट एक्शन लागू किया है। इसके जरिए अंतरराष्ट्रीय स्तर पर मैसेज दिया है कि अगर भारत और पाकिस्तान के बीच कभी कोई रिश्ते बनेगें, तो उसमें आतंकवाद को रत्ती भर जगह नहीं है।
1. सिंधु जल समझौता स्थगित करने का असर
पाकिस्तान में खेती की 90% जमीन यानी 4.7 करोड़ एरिया में सिंचाई के लिए पानी सिंधु नदी प्रणाली से मिलता है। पाकिस्तान की नेशनल इनकम में एग्रीकल्चर सेक्टर की हिस्सेदारी 23% है और इससे 68% ग्रामीण पाकिस्तानियों की जीविका चलती है। ऐसे में पाकिस्तान में आम लोगों के साथ-साथ वहां की बेहाल अर्थव्यवस्था और बदतर हो सकती है।
पाकिस्तान के मंगल और तारबेला हाइड्रोपावर डैम को पानी नहीं मिल पाएगा। इससे पाकिस्तान के बिजली उत्पादन में 30% से 50% तक की कमी आ सकती है। साथ ही औद्योगिक उत्पादन और रोजगार पर असर पड़ेगा।
2. अटारी-वाघा बॉर्डर बंद करने का असर
अमृतसर से 28 किमी दूर मौजूद अटारी बॉर्डर पाकिस्तान के साथ ट्रेड के लिए इकलौता मंजूर जमीनी रास्ता है। अफगानिस्तान के साथ भी भारत यहां से व्यापार करता है। 2023-24 में यहां से करीब 3,886 करोड़ का व्यापार हुआ।
इस बॉर्डर के जरिए भारत से सोयाबीन, चिकन, मीट, सब्जियां, लाल मिर्च, प्लास्टिक दाना जैसे चीजें जाती हैं। वहीं पाकिस्तान, अफगानिस्तान से भारत में सूखे मेवे, खजूर, जिप्सम, कांच, सेंधा नमक और कई जड़ी-बूटियां आती हैं। चेक पोस्ट बंद होने से इन सब पर रोक लग जाएगी। इलाज कराने के लिए भारत आने वाले पाकिस्तानियों को भी दिक्कत होगी। 2023-24 में 71.5 हजार लोगों से इस रास्ते का इस्तेमाल किया था।
3. SAARC वीजा छूट योजना रद्द होने का असर
इस योजना के तहत राजनेता, पत्रकार, व्यापारी, खिलाड़ी जैसी 24 कैटेगरी में बिना वीजा की यात्रा की सुविधा थी, लेकिन अब इसे रद्द कर दिया है। साथ ही 48 घंटे में पाकिस्तानियों को भारत छोड़ने के एक्शन से अब उन्हें जल्द से जल्द बाहर निकलनी की तैयारी करनी होगी।
4. उच्चायोग से सैन्य सलाहकारों की वापसी का असर
पाकिस्तानी उच्चायोग के डिफेंस, मिलिट्री, नेवी और एयरफोर्स के सलाहकारों को ‘पर्सोना नॉन ग्राटा’ घोषित करने से अब ये पद खत्म माने जाएंगे। भारत भी इस्लामाबाद से अपने सलाहकारों को वापस बुलाएगा। यानी दोनों देशों के बीच मिलिट्री-डिप्लोमैटिक रिलेशंस पूरी तरह से खत्म हो जाएंगे।
ये सलाहकार दोनों देशों के बीच मिलिट्री मूवमेंट और इंटेलिजेंस इन्फॉर्मेशन साझा करने में रोल निभाते थे। ऐसे में इनके न होने से दोनों देशों के बीच ऐसी जानकारियों साझा नहीं होंगी, जिससे गलतफहमियां और तनाव बढ़ सकता है। मिलिट्री कम्युनिकेशन चैनल बंद होने से दोनों देशों के बीच होने वाले छोटे-छोटे टकरावों का बड़े संघर्ष में तब्दील होने का खतरा बढ़ जाएगा।
5. उच्चायोग कर्मचारियों की संख्या 30 करने का असर
ये फैसला भारत-पाकिस्तान रिश्तों के न्यूनतम स्तर पर पहुंचने को दर्शाता है। इससे दोनों देशों के वीजा, ट्रेड, सिविल हेल्प जैसे डिप्लोमैटिक कामों पर असर पड़ेगा। ऐसे में पाकिस्तानियों को भारत में वीजा लेना मुश्किल हो जाएगा, जिससे एजुकेशन, हेल्थ और ट्रैवल सेक्टर को नुकसान होगा।
भारत के पूर्व डिप्लोमैट और रिटायर्ड IFS अफसर जेके त्रिपाठी मानते हैं कि इन फैसलों में सबसे बड़ा फैसला है सिंधु जल समझौते पर रोक। वे कहते हैं, सिंधु जल समझौते का सीधा असर आम पाकिस्तानियों पर पड़ेगा। इस समझौते के तहत पाकिस्तान के पंजाब प्रांत में भारत पानी जाता था, जो अब रूक जाएगा। इससे वहां चीख-पुकार मच जाएगी।
भारत-पाकिस्तान के बीच का सिंधु जल समझौता क्या है?
सिंधु नदी प्रणाली में कुल 6 नदियां हैं- सिंधु, झेलम, चिनाब, रावी, ब्यास और सतलुज। इनके किनारे का इलाका करीब 11.2 लाख किलोमीटर में फैला हुआ है। इसमें 47% जमीन पाकिस्तान, 39% जमीन भारत, 8% जमीन चीन और 6% जमीन अफगानिस्तान में है। इन सभी देशों के करीब 30 करोड़ लोग इन इलाकों में रहते हैं।
1947 में भारत और पाकिस्तान के बंटवारे के पहले से ही भारत के पंजाब और पाकिस्तान के सिंध प्रांत के बीच नदियों के पानी के बंटवारे का झगड़ा शुरू हो गया था। 1947 में भारत और पाक के इंजीनियरों के बीच ‘स्टैंडस्टिल समझौता’ हुआ। इसके तहत दो मुख्य नहरों से पाकिस्तान को पानी मिलता रहा। ये समझौता 31 मार्च 1948 तक चला।
1 अप्रैल 1948 को जब समझौता लागू नहीं रहा तो भारत ने दोनों नहरों का पानी रोक दिया। इससे पाकिस्तान के पंजाब प्रांत की 17 लाख एकड़ जमीन पर खेती बर्बाद हो गई। दोबारा हुए समझौते में भारत पानी देने को राजी हो गया।
इसके बाद 1951 से लेकर 1960 तक वर्ल्ड बैंक की मध्यस्थता में भारत पाकिस्तान में पानी के बंटवारे को लेकर बातचीत चली और आखिरकार 19 सितंबर 1960 को कराची में भारत के पीएम नेहरू और पाकिस्तान के राष्ट्रपति अयूब खान के बीच दस्तखत हुए। इसे इंडस वाटर ट्रीटी या सिंधु जल संधि कहा जाता है।