Breaking News: इस्लामी गुट हयात तहरीर अल-शाम के नेतृत्व वाले विद्रोही समूहों के गठबंधन ने सीरिया की राजधानी दमिश्क पर कब्जा कर लिया. इसके साथ ही इस पश्चिमी एशियाई देश में बशर अल-असद के 24 वर्षों के शासन का अंत हो गया है.
राष्ट्रपति असद देश छोड़ चुके हैं. तानाशाही के खिलाफ ट्यूनिशिया से 2008 में शुरू हुआ अरब स्प्रिंग तीन साल बाद, 2011 में सीरिया पहुंचा. यहां बशर अल-असद सरकार के खिलाफ शुरू हुआ विद्रोह देखते-देखते गृह युद्ध में तब्दील हो गया.
फिर इस गृह युद्ध में सीरियाई विद्रोही समूहों और चरमपंथी गुटों के अलावा अमेरिका, ईरान और रूस सहित अंतरराष्ट्रीय शक्तियां शामिल हो गईं और यह बहुआयामी संघर्ष में बदल गया. 13 वर्षों तक चले इस गृह युद्ध में 500,000 से अधिक सीरियाई मारे गए, और लाखों विस्थापित झेलने को मजबूर हुए. आइए सीरिया संघर्ष के कुछ महत्वपूर्ण पहलुओं को समझते हैं…
बमुश्किल एक सप्ताह से कुछ अधिक समय में, सीरियाई विद्रोहियों ने सीरिया के उत्तर-पश्चिम के अधिकांश हिस्से को अपने कब्जे में ले लिया. पिछले सप्ताह अलेप्पो के अधिकांश प्रमुख शहरों पर कब्जा करने के बाद, विद्रोहियों ने 5 दिसंबर को पश्चिमी शहर हामा से असद समर्थक सैनिकों को खदेड़ दिया. इसके बाद 6 दिसंबर को रणनीतिक तौर पर महत्वपूर्ण शहर होम्स को अपने कब्जे में लिया और 8 दिसंबर तक राजधानी दमिश्क को भी फतह कर लिया.
Also Read – इल्तिजा मुफ्ती के विवादित बयान से देश में मचा बवाल, कहा- हिंदुत्व एक बीमारी…
बशर अल-असद के नेतृत्व वाली सीरियाई सरकार 2011 में शुरू हुए लंबे और विनाशकारी गृह युद्ध के केंद्र में रही है. अल-असद ने साल 2000 में सीरिया की सत्ता संभाली थी. वह उस परिवार से आते हैं जिसने 1970 के तख्तापलट के बाद से सीरिया पर शासन किया. वह अलावाइट्स हैं, जो शिया इस्लाम की एक शाखा है.
अलावाइट्स सीरिया में अल्पसंख्यक हैं. बशर अल-असद ने शुरू में खुद को एक आधुनिक सुधारवादी नेता के रूप में पेश किया. लेकिन अरब स्प्रिंग के दौरान उन्होंने अपनी सरकार के खिलाफ शांतिपूर्ण विरोध प्रदर्शनों का जवाब क्रूर कार्रवाई के साथ दिया, जिससे देशव्यापी विद्रोह भड़क गया.
असद सरकार ने ईरान, रूस और लेबनान के सशस्त्र मिलिशिया ग्रुप हिज्बुल्लाह की मदद से कई वर्षों के युद्ध के बाद, विद्रोहियों के कब्जे वाले अधिकांश सीरियाई क्षेत्रों को वापस ले लिया. लेकिन असद सरकार के सहयोगी पिछने कुछ वर्षों के दौरान खुद कई मोर्चों पर संघर्ष में उलझ गए.
रूस यूक्रेन के साथ युद्ध में उलझा, ईरान का इजरायल के साथ संघर्ष शुरू हुआ और हिज्बुल्लाह को लेबनान में इजरायली सैन्य अभियान का सामना करना पड़ा. सीरिया में विद्रोही गुटों ने इस परिस्थिति का फायदा उठाया. उन्हें एक बार फिर पलटवार करने का मौका मिल गया और नतीजन बशर अल-असद सरकार का पतन हो गया.
हयात तहरीर अल-शाम, जिसके नाम का अर्थ है ‘लेवांत मुक्ति संगठन’. यह संगठन सीरिया के गृह युद्ध की शुरुआत में बनना शुरू हुआ, जब जिहादियों ने सैकड़ों विद्रोही और आत्मघाती हमलों के साथ असद समर्थक ताकतों से लड़ने के लिए अल-नुसरा फ्रंट का गठन किया. शुरुआत में अल-नुसरा फ्रंट के संबंध इस्लामिक स्टेट और अल-कायदा जैसे आतंकी संगठनों से थे.
लेकिन 2016 के मध्य तक, अल-नुसरा फ्रंट ने आतंकी संगठनों के साथ गठजोड़ की अपनी पहचान को बदलने के लिए, कई अन्य गुटों के साथ मिलकर हयात तहरीर अल-शाम नाम से नए संगठन की स्थापना की. अमेरिका और अन्य पश्चिमी देश अब भी इसे एक आतंकवादी समूह मानते हैं. हयात तहरीर अल-शाम के नेता, अबू मोहम्मद अल-जोलानी ने न्यूयॉर्क टाइम्स के साथ बातचीत में बताया था कि उनका पहला लक्ष्य सीरिया को बशर अल-असद के दमनकारी शासन से मुक्त कराना है.
कुर्द सीरिया में एक अल्पसंख्यक समुदाय है. इस समुदाय के लोगों की भागीदारी से बनी है कुर्द फोर्स, जो सीरियन डेमोक्रेटिक फोर्सेज के बैनर तले सीरिया में इस्लामिक स्टेट के खिलाफ लड़ाई में अमेरिका के प्रमुख सहयोगी रही. असद समर्थक सेना से चरमपंथी समूहों के पराजित होने के बाद, कुर्द नेतृत्व वाली सेनाओं ने उत्तर-पूर्व के शहरों पर अपना नियंत्रण मजबूत कर लिया और अपने द्वारा बनाए गए स्वायत्त क्षेत्र का विस्तार किया.
लेकिन कुर्द लड़ाकों को अब भी अपने पुराने दुश्मन तुर्की से संघर्ष करना पड़ा, जो उन्हें कुर्द अलगाववादी विद्रोह से जुड़ा हुआ मानता है. इसके अलावा कई अन्य सीरियाई मिलिशिया संगठन भी हैं जो अपने-अपने एजेंडे और निष्ठाओं के साथ गृह युद्ध में लड़ रहे हैं.
गृह युद्ध की शुरुआत के बाद से, तुर्की की सेना ने सीमा पार सीरिया में कई सैन्य हस्तक्षेप शुरू किए, जिनमें से ज्यादातर सीरियाई कुर्द नेतृत्व वाली सेनाओं के खिलाफ था. तुर्की अब सीरिया की उत्तरी सीमा पर एक क्षेत्र को प्रभावी ढंग से नियंत्रित करता है. तुर्की सीरियन नेशनल आर्मी जैसे गुटों का भी समर्थन करता है, जो बशर अल-असद शासन के खिलाफ लड़ रहे सशस्त्र विद्रोही समूहों का गठबंधन है.
विश्लेषकों का मानना है कि संभवत: हयात तहरीर अल-शाम के नेतृत्व में विद्रोही गुटों के ताजा हमले को तुर्की की मौन स्वीकृति थी. सीरिया के कई बड़े शहरों पर विद्रोहियों के कब्जे के बाद तुर्की के राष्ट्रपति रेसेप तैयप एर्दोगन ने 6 दिसंबर को इस्तांबुल में जुमे की नमाज के बाद संवाददाताओं से कहा, ‘इदलिब, हामा, होम्स और निश्चित रूप से अंतिम लक्ष्य दमिश्क है. विद्रोही सेनाओं का मार्च जारी है. हमारी इच्छा है कि सीरिया में यह मार्च बिना किसी बाधा के जारी रहे.’
रूस सीरिया में 13 वर्षों के गृह युद्ध के दौरान, बशर अल-असद के सबसे वफादार विदेशी समर्थकों में से एक रहा. रूस ने विद्रोहियों के खिलाफ असद समर्थक सेनाओं की मदद के लिए सीरिया में अपने सैनिक और दुश्मनों पर बमबारी के लिए फाइटर जेट भेजे. इसने सीरिया में हवाई और नौसैनिक अड्डों के साथ एक रणनीतिक सैन्य उपस्थिति बनाए रखी है, जिसका उपयोग वह इस क्षेत्र में अपने सैन्य अभियानों के लिए करता है.
विश्लेषकों का कहना है कि यूक्रेन में भीषण युद्ध के कारण रूस सीरिया की सरकार को पहले की तरह मजबूती से समर्थन देने में असमर्थ रहा है. पिछले कुछ वर्षों में विद्रोहियों के खिलाफ रूसी हवाई हमलों की संख्या बहुत कम रही, जिस कारण उन्हें दमिश्क को कब्जाने के लिए आगे बढ़ने में कोई समस्या नहीं हुई.
सीरिया ईरान के ‘एक्सिस ऑफ रेजिस्टेंस’ (मध्य पूर्व में ईरान के नेतृत्व वाला राजनीतिक और सैन्य गठबंधन) का एक मुख्य हिस्सा है. ‘एक्सिस ऑफ रेजिस्टेंस’ देशों और समूहों का एक नेटवर्क है, जिसमें हिज्बुल्लाह, हमास और यमन में हूती शामिल हैं. इस गठबंधन का प्रमुख लक्ष्य इजरायल का प्रतिरोध और मध्य पूर्व में अमेरिकी प्रभाव को कम करना है. इराक और सीरिया के जरिए ईरान, हिज्बुल्लाह को हथियार मुहैया कराता है.
ईरान समर्थित हिज्बुल्लाह ने गृह युद्ध के दौरान बशर अल-असद के पक्ष में लड़ने के लिए अपने हजारों लड़ाकों को भेजकर इस एहसान का बदला चुकाया है. हालांकि, विद्रोहियों के दमिश्क पर कब्जा करने से एक दिन पहले शायद ईरान ने भी मान लिया था कि अब वह बशर अल-असद को सत्ता में बनाए रखने में मदद नहीं कर सकता. उसने सीरिया से अपने सैन्य कमांडरों और कर्मियों को निकालना शुरू कर दिया.
सीरिया के गृह युद्ध में अमेरिका की भूमिका कई बार बदल चुकी है. ओबामा प्रशासन ने शुरू में सीमित प्रभाव के साथ, असद सरकार के खिलाफ विद्रोहियों को हथियार और ट्रेनिंग देकर उनका समर्थन किया. इस्लामिक स्टेट के 2014 में उदय के बाद, अमेरिकी सेना ने हवाई हमलों और कुर्द बलों की सहायता से सीरिया में इस आतंकवादी समूह के खिलाफ निर्णायक लड़ाई लड़ी.
इस्लामिक स्टेट को फिर से पनपने से रोकने के लिए उत्तर पूर्वी सीरिया में अमेरिकी सेना ने डेरा डाला. राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने 2019 में सीरिया से अधिकतर अमेरिकी सैनिकों को वापस बुला लिया. लेकिन अब भी लगभग 900 अमेरिकी सैनिक उत्तर-पूर्व सीरिया में कुर्द-नियंत्रित ऑयल ड्रिलिंग क्षेत्रों में तैनात हैं. इराक और जॉर्डन के साथ लगी सीरिया की सीमाओं के पास दक्षिण-पूर्व में एक अमेरिकी मिलिट्री पोस्ट भी मौजूद है.
सीरिया में इजरायल की सैन्य गतिविधियां आत्मरक्षा से जुड़ी हैं. वह हिज्बुल्लाह और ईरानी सैन्य ठिकानों, हथियार उत्पादन सुविधाओं और उन परिवहन गलियारों को हवाई हमलों के जरिए निशाना बनाता है, जिनका उपयोग ईरान हिज्बुल्लाह को हथियार भेजने के लिए करता है.
विद्रोहियों का कहना था कि उनका पहला लक्ष्य बशर अल-असद को सत्ता से हटाना है. लेकिन यह स्पष्ट नहीं है कि अब आगे क्या होगा. अंतरराष्ट्रीय समुदाय ने अनिच्छा से ही, लेकिन असद को सीरिया के नेता के रूप में स्वीकार कर लिया था. अब विद्रोहियों के हाथों असद सरकार के पतन ने पहले से ही उथल-पुथल वाले इस क्षेत्र में और अधिक अनिश्चितता का खतरा पैदा कर दिया है.
कुछ अरब देशों ने वर्षों तक असद सरकार से किनारा करने के बाद पिछले साल उनके साथ राजनयिक संबंधों को सामान्य करना शुरू कर दिया था. अमेरिका और अन्य पश्चिमी देश हयात तहरीर अल-शाम को लेकर सतर्कता बरतते रहे हैं.
इस विद्रोही गुट के नेताओं को पता है कि यदि उनकी पहचान जिहादी संगठन के रूप में बनती है, तो वे सीरियाई सरकार में शामिल होने या देश का नेतृत्व करने की अपनी आकांक्षाओं को साकार नहीं कर सकते हैं.
चाहे विद्रोही अपने लक्ष्य को हासिल करने में सफल हों या नहीं, लेकिन इस क्षेत्र की प्रमुख शक्तियों- इजरायल, ईरान और तुर्की सभी के हित सीरियाई गृह युद्ध के परिणाम से जुड़े हैं. इसका अर्थ है कि सीरिया के गृह युद्ध का परिणाम न केवल मध्य पूर्व को प्रभावित करेगा, बल्कि अमेरिका और रूस जैसी वैश्विक शक्तियों को भी प्रभावित करेगा.