MP News : मध्य प्रदेश में गेहूं खरीदी को लेकर एक नया विवाद उठ खड़ा हुआ है। राज्य के अशोकनगर जिले में समर्थन मूल्य पर गेहूं खरीदी के लिए पंजीयन के दौरान किसानों के लिए सहकारी बैंक खाता अनिवार्य कर दिया गया है। इस नए फरमान ने किसानों को संकट में डाल दिया है। किसान संगठनों ने इसे तानाशाही फरमान करार देते हुए इस पर विरोध जताया है और प्रशासन से हस्तक्षेप की मांग की है।
सहकारी बैंक खाता अनिवार्य
प्रदेश के जिला सहकारी बैंक गुना ने पंजीयन कराने वाले किसानों के लिए एक नया आदेश जारी किया है, जिसमें कहा गया है कि किसानों को पंजीयन के दौरान सहकारी बैंक का खाता दर्ज करना होगा। अगर किसी किसान का सहकारी बैंक में खाता नहीं है, तो उसे खाता खुलवाकर आधार कार्ड से लिंक करना अनिवार्य कर दिया गया है। यह आदेश किसानों के लिए अतिरिक्त बोझ बन गया है और वे इसे अपनी परेशानी का कारण मान रहे हैं।
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किसान संगठनों का विरोध
किसान संगठनों का कहना है कि यह आदेश किसानों की स्वतंत्रता का उल्लंघन है। संयुक्त किसान मोर्चा अशोकनगर के संरक्षक जसदेव सिंह का कहना है कि “गेहूं खरीदी का पंजीयन कराने किसानों को सहकारी बैंक में खाता खुलवाने के लिए मजबूर किया जा रहा है।” उन्होंने यह भी कहा कि “फसल किसान की है, तो वह तय करेगा कि उसे पैसा किस बैंक अकाउंट में चाहिए। किसी बैंक की तानाशाही नहीं होनी चाहिए।”
बैंक की वित्तीय क्षमता पर सवाल
किसानों और किसान संगठनों का यह भी कहना है कि सहकारी बैंक 10 हजार रुपये का भुगतान समय पर नहीं कर पाती, तो लाखों रुपये का भुगतान कैसे करेगी? किसानों को जब भी सरकारी खरीदी में गेहूं का भुगतान मिलता है, तो उन्हें जल्दी पैसे की जरूरत होती है। यदि सभी किसानों का भुगतान सहकारी बैंक खातों में जाएगा, तो यह किसानों के लिए और भी समस्याएं पैदा करेगा क्योंकि बैंक के पास इतनी बड़ी राशि का भुगतान करने की क्षमता नहीं है।
प्रशासन से हस्तक्षेप की मांग
किसान संगठनों ने इस मामले में प्रशासन से तुरंत हस्तक्षेप की मांग की है। उनका कहना है कि इस आदेश के चलते किसानों को कठिनाई का सामना करना पड़ेगा, क्योंकि सहकारी बैंक के पास भुगतान के लिए आवश्यक संसाधन नहीं हैं। किसानों का कहना है कि उन्हें अपनी पसंद के बैंक में भुगतान प्राप्त करने का अधिकार होना चाहिए, और यह तानाशाही का तरीका सही नहीं है।