भोपाल गैस त्रासदी को 40 साल से भी ज्यादा का समय हो चुका है। नए साल यानी एक जनवरी 2025 को पूरे 40 साल 30 दिन बाद इस केमिकल कचरे को यूनियन कार्बाइड के बंद पड़े फैक्टरी वाले इलाके से हटाकर नष्ट करने के लिए दूसरी जगह ले जाया जा रहा है। चौंकाने वाली बात यह है कि अमेरिकी कंपनी की कारगुजारियों के बाद छूटे इस कचरे को हटाने के लिए वर्षों तक कोशिशें की गईं, लेकिन कागजों पर हुई इस कार्यवाही का जमीन पर कोई असर नहीं दिखा। कई साल की अदालती कार्यवाही के बाद अब आखिरकार केंद्र और मध्य प्रदेश सरकार ने आपसी सहयोग से इस जहरीले कचरे को हटाने का काम शुरू किया है।
इस पूरे घटनाक्रम के बीच यह जानना जरूरी है कि 2 दिसंबर 1984 को मध्य प्रदेश के भोपाल में उस रात आखिर गैस लीक की घटना में पैदा हुआ केमिकल कचरा है क्या? यह कितना खतरनाक है और इसके लिए जिम्मेदार कौन है? अब तक इसे हटाने की क्या कोशिशें हुईं और इस काम को अंजाम देने में 40 वर्षों का समय कैसे लग गया? कैसे अमेरिका के बाद एक जर्मन फर्म ने भी इस जहरीले कचरे को हटाने से हाथ पीछे खींच लिए?
भोपाल में उस रात हुआ क्या था, केमिकल कचरा आया कहां से?
दुनिया की सबसे बड़ी औद्योगिक आपदाओं में से एक भोपाल गैस त्रासदी का घटनाक्रम शुरू हुआ 2 दिसंबर 1984 को। यहां अमेरिकी कंपनी यूनियन कार्बाइड लिमिटेड (यूसीआईएल) के पेस्टिसाइड निर्माण प्लांट (जहां कीटनाशक बनते थे) से बेहद जहरीली मिथाइल आइसोसाइनेट (एमआईसी) गैस लीक हुई थी।
इस घटना में करीब 5,000 लोग मारे गए थे और कई अन्य इससे प्रभावित हुए थे। हालांकि, अनाधिकारक आंकड़े सीधे गैस लीक और बाद में इसके असर से होने वाली कुल मौतों की संख्या 15 हजार से भी अधिक बताते हैं। वहीं, घायलों और प्रभावित की संख्या के अनुमान हजार से लाखों लोगों तक हैं। इस गैस लीक से बचे प्रभावित लोगों में त्वचा संबंधी बीमारियों से लेकर उनकी प्रजनन क्षमता पर असर और बच्चों में स्वास्थ्य संबंधी समस्याओं तक की शिकायतें दर्ज की गई हैं।
इस पूरे घटनाक्रम के लिए जिम्मेदार कंपनी यूनियन कार्बाइड, जो कि अमेरिकी यूनियन कार्बाइड कॉरपोरेशन का हिस्सा थी, अब डाओ केमिकल्स में शामिल हो चुकी है। केंद्र सरकार की तरफ से भोपाल गैस त्रासदी के पीड़ितों को यूनियन कार्बाइड के मालिकाना हक वाली कंपनियों से अतिरिक्त मुआवजा दिलाने से जुड़ी एक क्यूरेटिव पिटीशन 2023 में ही सुप्रीम कोर्ट में खारिज हो चुकी है।
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कितना खतरनाक है यह कचरा?
बताया जाता है कि इस गैस लीक के चलते फैक्टरी के आसपास बड़ी मात्रा में फैली चीजें जहरीली हो गईं। खासकर कीटनाशक उत्पादन के बाद जो बचा हुआ कचरा फैक्टरी के सौर वाष्पीकरण तालाब (जहां सूरज की रोशनी से भाप बनाकर गंदे पानी को खत्म कर दिया जाता हो और ठोस पदार्थों को अलग इकट्ठा कर लिया जाता था) में पड़ा था, उसे गैस लीक के बाद जहां-तहां ही छोड़ दिया गया। इसका असर यह हुआ कि जहरीली गैस के प्रभाव में आने के बाद यह कचरा और ज्यादा खतरनाक हो गया। इसका असर फैक्टरी के आसपास मौजूद जल स्रोतों पर भी पड़ा और बड़ी संख्या में क्षेत्र में लगे हैंडपंपों को सील किया जा चुका है।
यूनियन कार्बाइड फैक्टरी के पास जो कचरा पड़ा है, उसमें कीटनाशक- सेविन के बायप्रोडक्ट शामिल हैं। इसके अलावा अधूरे उत्पादन के चलते कुछ केमिकल्स और इसे बनाने में लगा कच्चे केमिकल भी कचरे में शामिल हैं। विशेषज्ञों का कहना है कि इतने वर्षों में यह कचरा जानलेवा केमिकल्स का भंडार बन चुका है। इसमें भारी धातुएं, जैसे निकेल और मैंगनीज की मौजूदगी है। इसके अलावा लेड, मरकरी और क्लोरिनेटेड नैप्थलीन शामिल हैं, जो कि कचरे के जहरीले होने की असली वजह हैं। यह केमिकल कैंसर जैसी बीमारी को जन्म दे सकते हैं। इसके अलावा यह बच्चों के विकास और मानव शरीर में कई और तरह की बीमारियों को जन्म दे सकते हैं।
अब तक यह साफ नहीं है कि इस कचरे ने भोपाल में कितने क्षेत्र पर असर डाला है। हालांकि, एक एनजीओ ने 2004 में कहा था कि यूनियन कार्बाइड प्लांट से 5 से 10 किलोमीटर की दूरी तक कई हैंडपंपों में जहरीले केमिकल पाए जाने की बात सामने आई है। भारत के राष्ट्रीय पर्यावरण इंजीनियरिंग संस्थान की रिपोर्ट में भूमिगत जल के डरावने स्तर तक जहरीले होने की बात सामने आने के बाद सरकार ने कई हैंडपंपों को सील कर दिया था।
सरकारों की तरफ से अब तक ऐसी कोई स्टडी नहीं कराई गई है, जिससे यह पता लग सके कि फैक्टरी का यह जहरीला कचरा कितनी गहराई और कितनी लंबी दूरी तक भोपाल के पानी को प्रभावित कर चुका है। हालांकि, माना जाता है कि हर साल होने वाली बारिश के चलते इस जहरीले कचरे का असर बड़े क्षेत्र में फैल चुका है।
जहरीले कचरे को हटाने की अब तक क्या कोशिशें हुईं?
यूनियन कार्बाइड की गलती की वजह से फैले इस जहरीले कचरे को लेकर अमेरिका से लेकर भारत तक में कई केस हुए। 2004 में इससे जुड़ी एक जनहित याचिका मध्य प्रदेश हाईकोर्ट में भी दायर की गई थी। इस याचिका में मांग की गई थी कि फैक्टरी के आसपास जिन जगहों पर कचरा फैला है उस प्रदूषण के लिए डाओ केमिकल्स की जिम्मेदारी तय की जाए और वहां सफाई कराने के लिए तत्काल कदम उठाए जाएं। हाईकोर्ट ने इस मामले में एक टास्क फोर्स का गठन किया था, जिसकी अध्यक्षता केंद्र सरकार के केमिकल्स और पेट्रोकेमिकल्स विभाग के सचिव को सौंपी गई थी।
2005 में केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड (सीपीसीबी) के विशेषज्ञों ने एक गुजरात के अंकलेश्वर में स्थित भरूच एनवायरो-इन्फ्रास्ट्रक्चर लिमिटेड (बीईआईएल) में एक विश्व स्तरीय इन्सीनरेटर (कचरा भट्ठी) की पहचान की। इस तरह के इन्सीनरेटर उच्च तापमान में केमिकल कचरों (जैसे- कीटनाशक) को जलाकर नष्ट करने में काम आते हैं। सीपीसीबी के अधिकारियों ने भोपाल गैस कांड के बाद इकट्ठा हुए कचरे को नष्ट करने के लिए इसी इन्सीनरेटर को चुना।
हालांकि, इस जहरीले कचरे को लेकर देशभर में इतना डर फैला था कि गुजरात में तो इसे लाने के खिलाफ प्रदर्शन शुरू हो गए। 2007 में यह विरोध इतना उग्र हो गया कि राज्या सरकार ने खुद इस केमिकल कचरे को सीमापार आने से रोकने का आदेश जारी कर दिया। बाद में 2009 में सुप्रीम कोर्ट के दखल के बाद सीपीसीबी की इस कोशिश को रोक दिया गया।
2015 में केंद्र सरकार ने एक बार फिर पीथमपुर स्थित ट्रीटमेंट, स्टोरेज, डिस्पोजल फैसिलिटी में कचरा नष्ट करने से जुड़ा ट्रायल किया। हालांकि, यहां रहने वालों के विरोध के बाद इस ट्रायल को बंद कर दिया गया। इसके बाद अगले सात वर्षों तक केंद्र और राज्य सरकार के बीच भोपाल गैस त्रासदी के कचरे को नष्ट करने को लेकर कोई समन्वय नहीं हुआ और यह जहां-तहां पड़ा रहा।
इस दौरान अलग-अलग न्यायालयों में फटकार के बाद आखिरकार 4 मार्च 2024 को केंद्र सरकार ने इस जहरीले कचरे को खत्म करने के लिए 126 करोड़ रुपये जारी किए।
इसके बाद हाईकोर्ट की तरफ से गठित टास्क फोर्स ने कचरे को नष्ट करने के लिए कुछ और ट्रीटमेंट, स्टोरेज और डिस्पोजल केंद्रों की पहचान की। इनमें हैदराबाद के दुंगिगल और मुंबई के तलोजा में साइट भी शामिल रहीं। 2010 में सुप्रीम कोर्ट ने 346 मीट्रिक टन जहरीले कचरे को नष्ट करने के लिए मध्य प्रदेश के इंदौर के करीब पीथमपुर में टीएसडीएफ साइट अधिकृत की। इसे एक सफल ट्रायल के बाद ही मंजूरी दी गई थी। हालांकि, दो साल बाद राज्य सरकार ने इस फैसले को चुनौती दे दी। 2012 में एक स्पेशल लीव पिटीशन (एसएलपी) के जरिए मध्य प्रदेश सरकार ने कहा कि पीथमपुर का कचरा नष्ट करने वाला केंद्र तकनीकी रूप से भोपाल गैस त्रासदी के जहरीले कचरे को खत्म करने लायक नहीं है। इसके पीछे वजह बताई गई कि बाकी औद्योगिक कचरों के मुकाबले गैस त्रासदी से बना केमिकल कचरा ज्यादा खतरनाक और हानिकारक है।
इस बीच सरकार ने इस जहरीले कचरे को नष्ट करने के लिए टेंडर भी दिया। जर्मनी की एक कंपनी डायचे गेशेलशाफ्ट फ्यूअर इंटरनेशनल ज्यूसामेनआर्बाइट जीएमबीएच (जीआईजेड) ने 24.56 करोड़ रुपये में भोपाल के इस कचरे को जर्मनी में नष्ट करने का प्रस्ताव भी दिया। हालांकि, 2012 में ही जर्मनी में इस केमिकल कचरे के डर से विरोध प्रदर्शन शुरू हो गए। जर्मन कंपनी ने इसके बाद अपना प्रस्ताव वापस ले लिया।
अमेरिका ने कैसे जिम्मेदारी से छुड़ाया पीछा?
1984 के इस गैस लीक कांड और इसके पीछे छूटे कचरे के लिए जिम्मेदार यूनियन कार्बाइड और इसके प्रमुख वॉरेन एंडरसन घटना के बाद से ही अमेरिका में आजाद रहे। इससे गैस लीक कांड के मामले में जिम्मेदारी तय करने से जुड़ा एक केस अमेरिकी अदालत में भी दायर हुआ।
हालांकि, यहां 2012 में कोर्ट ने यूनियन कार्बाइड और एंडरसन दोनों को ही राहत दी और कहा कि वह भोपाल में किसी भी तरह के पर्यावरण से जुड़े नुकसान और प्रदूषण के लिए जिम्मेदार नहीं थे।
अमेरिका के मैनहैटन में तत्कालीन डिस्ट्रिक्ट जज जॉन कीनन ने उस केस को खारिज कर दिया था, जिसके तहत यूनियन कार्बाइड और एंडरसन पर भोपाल प्लांट के आसपास पानी और जमीन को दूषित करने का आरोप लगा था। जज ने कहा था कि तब इस घटना की जिम्मेदारी यूनियन कार्बाइड इंडिया लिमिटेड की थी न कि इसकी पैरेंट कंपनी यूसीसी की। कोर्ट ने साफ किया था कि जहरीले कचरे के निपटान की जिम्मेदार संबंधित राज्य की सरकार की थी।
जहरीले कचरे के साथ आगे क्या करने की योजना?
यूनियन कार्बाइड की बंद पड़ी फैक्टरी के बाहर फैले कचरे को एक जनवरी से हटाना शुरू किया गया है। योजना के मुताबिक, यह पूरा प्रोजेक्ट 180 दिन में खत्म किया जाना है। पहले 20 दिन में इस जहरीले कचरे को प्रदूषण वाली जगह से ड्रमों में भरकर और पैक कर नष्ट करने वाली जगह पर ले जाया जाएगा। बाद में इस कचरे को एक स्टोरेज केंद्र में रखा जाएगा, जहां इसमें उन केमिकल्स को मिलाया जाएगा, जो कि कचरे के जहरीले असर को खत्म कर देंगे। यानी केमिकल रिएक्शन के जरिए जहरीले कचरे को निष्क्रिय किया जाएगा। इसके बाद इस कचरे को फिर 3-9 किलो की मात्रा में बोरियों में भरा जाएगा।
इसके बाद इस कचरे को जलाने की तैयारियां शुरू होंगी। कचरे की जहरीली प्रकृति को खत्म करने के बाद इस पर कई टेस्ट्स होंगे और इन्हीं टेस्ट रिपोर्ट्स के आधार पर अलग-अलग विभागों से इसे इन्सिनरेटर (कचरा-भट्ठी) में जलाने की मंजूरी मांगी जाएगी। कचरे को जलाने से पहले यह तय किया जाएगा कि जहां इसे जलाया जा रहा है, वहां हवा की गुणवत्ता न खराब हो और जहरीले पदार्थ इसमें न मिल जाएं। इसके बाद 40 साल से पड़े इस कचरे को कचरा भट्ठी में जलाकर नष्ट कर दिया जाएगा। इस पूरे कार्य में केंद्र की तरफ से जारी 126 करोड़ रुपये की लागत का अनुमान है।
इंदौर के करीब पीथमपुर कैसे ले जाया जा रहा जहरीला कचरा
यूनियन कार्बाइड फैक्टरी में रखा 337 मिट्रिक टन कचरे का का निपटान करने के लिए भोपाल से 12 कंटेनर पीथमपुर के लिए रवाना हुए। सोमवार रात 9 बजे कचरे के कंटेनर सुरक्षा के साथ यूनियन कार्बाइड फैक्ट्री से निकले। इसके लिए 250 किमी का ग्रीन कॉरिडोर बनाया गया। कंटेनरों में कचरे की पैकिंग, लोडिंग और परिवहन सीपीसीबी द्वारा निर्धारित मापदंडों के अनुसार और सुरक्षा के पुख्ता इंतजामों के साथ किया गया है। कंटेनर्स के साथ पुलिस सुरक्षा बल, एंबुलेंस, फायर ब्रिगेड तथा क्विक रिस्पॉस टीम भी मौजूद रही। कचरे ले जाने के लिए लीक प्रूफ फायर रेजिस्टेंट कंटेनर इस्तेमाल किए गए। हालांकि, जिस दौरान यह कंटेनर इंदौर के नजदीक हाईवे से निकल रहे थे, उस दौरान इसके आसपास बड़े बेड़े होने की वजह से लंबे जाम की स्थिति पैदा हो गई।
हर कंटेनर में दो प्रशिक्षित ड्राइवर नियुक्त किए गए। इन कंटेनरों का मूवमेंट जीपीएस से मॉनिटर किया गया। कंटेनर भोपाल, सीहोर, देवास, इंदौर से धार होते हुए पीथमपुर पहुंचे। यूनियन कार्बाइड फैक्ट्री के जहरीले कचरे को भरने का काम रविवार को ही शुरू कर दिया गया था। इसको कंटेनरों में पैक करने के लिए दो सौ से ज्यादा मजदूरों की ड्यूटी लगाई गई। इनकी तीस-तीस मिनट की शिफ्ट लगाई गई,जिससे उनको किसी प्रकार का नुकसान ना हो। बता दें कचरे को पीथमपुर की रामकी एनवायरो कंपनी में जलाया जाएगा। कचरे को ले जाते समय भारी पुलिस बल तैयान किया गया।